God Nakchand, the idol of devotion, reveals his beloved son Munshiram immersed in sin.
Moaning. Through generations of god worshiped in the family
What happened, how happened? The poisonous lust of lust
How did the boy pick him up? What should I go to? my
Son, in the days of Dussehra, some of the money spent on the fair
He had bought a broken shirt in which the water on the deity
Brought
He used to fill the water, he made a bronze pillar.
The shopkeeper on which was purchased and the middle of it
The bites were studded. Uncut in one bowl, Chandan in second
And used to keep flowers and billboards in the plate. Daily right
Vishwanath ji with a dhoti in hand and dhoti in front
Went to visit On the road with all the shiveling
Visvanatha, Shanti Deityamahavir, Annapurna
And Ganesh Indriyas lovingly rendered Chadan, Akshat, Pushpa, Naivedya,
Rubbing with pans at home and refreshing it regularly
The rule was gone. Rule when my son was 10
Tulsi Ramayana devoted regularly to regular reads.
Of
Was there. One day lifted Shivling with his brother from the ruined temple
Brought me and imitated myself by bathing the Shivling
Flowers, welcomed plates and incense lamp, Nayveda used to make deccan.
How many devotional songs in Banda listen to Ram Charit Manas
Was there. On each leg of Hanuman Chalisa on every Adityavar
Standing after reading a hundred times, salt drinks naught
Was there. The back of the hairstyle by returning to school
If done, by the night of Aditywar, by the end of the Lanka war
Gives Today my son has become an atheist Oh God ! My call
Listen . Protecting my son and blurring my family
Save from
ईश्वर भक्त धर्मनिष्ठ निर्भीकता की प्रतिमूर्ति नानकचंद अपने लाडले बेटे मुंशीराम को पाप सागर में डूबते हुए देखकर
विलाप कर रहा है । पीढ़ियों से ईश्वर भक्ति में लीन परिवार में
यह क्या हुआ, कैसे हुआ? वासनाओं का जहरीला वासुकि मेरे
बेटे को कैसे उठा कर ले गया । मैं क्या करेंकहां जाऊँ? मेरा
बेटा तो दशहरे के दिनों में दिये गये मेले के खर्च में से कुछ धन
बचाकर टूटीदार झारी खरीद कर था जिसमें देवता पर जल
लाया
चढ़ाने के लिये जल भर लेता था, उसने पीतल की एक ढलिया।
खरीदी थी जिसके ऊपर पकड़ने का दस्ता और बीच में दो
कटोरियां जड़ी होती थी । एक कटोरी में अक्षत, दूसरी में चंदन
और थाली में फूल और बिल्वपत्र रख लेता था । नित्य प्रातः दांये
हाथ में झारी और बगल में धोती, अंगोछा लेकर विश्वनाथ जी
के दर्शन करने जाता था । मार्ग में सब शिवलिंगों पर झारी से
एक बूंद खूआते हुए विश्वनाथ, शनीचर देवतामहावीर, अन्नपूर्णा
और गणेश इन्डिराज प्रेम पूर्वक चदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य,
धूपदान से पूजा करके घर आकर जलपान करना उसका नित्य
नियम हो गया था । मेरा बेटा जब 10 वर्ष का था तब नियम
पूर्वक तुलसीकृत रामायण भक्तिपूर्वक नियमित पाठ करता।
का
था । एक दिन अपने भाई के साथ उजड़ मंदिर से शिवलिंग उठा
लाया और मेरा अनुकरण कर शिवलिंग को स्नान कराके उस पर
पुष्प, वेलपत्र चढ़ाता और धूप दीप, नैवेद्य देवार्पण करता था ।
बांदा में कितने भक्ति भाव से राम चरित मानस का पाठ सुनता
था । प्रत्येक आदित्यवार को हनुमान चालीसा का एक टांग पर
खड़े होकर सौ बार पाठ करने के पीछे नमक शून्य भोजन करता
था । सनीचर को स्कूल से लौट कर जो बाल काण्ड का आरंभ
करता तो आदित्यवार की रात तक लंका काण्ड की समाप्ति कर
देता । आज मेरा बेटा नास्तिक हो गया है । हे ईश्वर ! मेरी पुकार
सुन । मेरे बेटे की रक्षा कर और मेरे परिवार को कलंकित होने
से बचा ।