भले ही पार कर गयी 30 को मैं
चेहरे पर नूर है
हल्का सा गुरुर है
नही करती अब परवाह मैं
किसी के भी तानों की, उल्हानो की
वो दिन अब लद गये
जब आँखों मे पानी था
छुप छुप के मैं रोती थी
होठों पर ले नकली मुस्कान
अब रहती हूँ मस्त अपने में
निहारती हूँ खुद को , सँवारती हूँ खुद को देख आईने में
स्तवन भी मैं गाती हूँ तो गजल भी मै गाती हूँ
जरूरत नही मुझे रिझाने की अब सजन को
नजर मुझे आता है आँखों में उनकी अपना अक्स
मेरे बिन कहे पढ़ लेते वो मेरी जुबाँ
काम वो करती हूँ मैं जो मुझे भाता है
कलम भी चलाती हूँ तो कड़छी भी चलाती हूँ
पार्लर भी जाती हूँ तो मंदिर भी जाती हूँ
बगियाँ मे देख तितली बच्चो सी मचल जाती हूँ
सब कुछ होते भी कमी महसूस करती हूँ
अपने दिल के टुकड़ों की
बात उनसे करके कुछ पल , हो लेती हूँ खुश मैं
देख कर खुश उनको भूल जाती हूँ गम अपने
मैं
खिल उठती हूँ चहक उठती हूँ
खुद में ही महक उठती हूँ
30 के पार करके मैं जीवन की नयी पारी खेल रही मैं
जीवन के एक एक पल को जी रही मैं
जो नही कर पायी अभी तक
वो सब कर रही मैं
30को पार करने का गम नही कर रही मैं ।
महिला शक्ति को समर्पित...
धन्यवाद
प्रहलाद सिंह डांगरा
Nice