पिता- जीवन के एकमात्र सिपाही (Original Poetry, 2020)

in #father5 years ago

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वह दीवार जो गिरती नहीं
वह खुशबू जो निरंतर है
वह प्रकाश जो खुद को जलाकर अंधेरे को मिटाता
वही है विधाता,वही है पिता

जैसे सत्य निरंतर है
आकाश अनंत है
जीवन और मृत्यु एक तरंग है
पिता होना विधाता का ही एक ढंग है

महसूस कर जैसे हवा तेरे संग है
जीवन समय का प्रारंभ है
अंदर विचारों की एक निरंतर जंग है
उस निरंतरता में आशा,तृष्णा,काम व कई प्रसंग है
पिता,आप उस निरंतर जंग में एकमात्र उमंग हैं

मेरी कायरता में साहस हैं आप
मेरी असफलता में उम्मीद है आप
मेरे समय के प्रारंभ है
डगमगाते हुए जीवन के खंब हैं आप


This is a Hindi version of poetry that I wrote on Jun 21, 2020. I would appreciate any kind of criticism, appreciation or opinion.

How do you see your relationship with father?

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With Love & Respect,
@hash-tag

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I can’t read Hindi otherwise I would have read this one. Could you post it both in Hindi and in English perhaps? I know things don’t translate well between languages but I think you could get more support if you post in both. Cheers!

Thank you! I would surely consider your suggestion..