क्या ख़ूब दिखते दिखाते हैं लोग।
बेहयाई ओढ़कर शर्माते हैं लोग।
आदिम युग ,लोटकर आ रहा है,
आइने को ही नंगा बताते हैं लोग।
आदमी में क्यों आदमी खोजते हो ,
आदमी को तो रोज़ खाते हैं लोग।
आगे अकेले ही जाना पड़ेगा,सिर्फ़,
शमसान तक साथ जाते हैं लोग।
ज़िंदा जला देते हैं जिसको यहाँ ,
उसको भी फिर से जलाते हैं लोग ।
मरते हैं जो रोज़ ठंड से अकड़कर ,
कफ़न उनको भी ओढ़ाते हैं लोग।
जन्म लेकर पलते बढ़ते हैं जिससे,
उसी जिस्म को नोच खाते हैं लोग।
किस होसले की बात करते हो तुम
मुर्दों से भी यहाँ डर जाते हैं लोग।
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