मुसाफिर

in #hindi8 years ago

जाने कितनो ने लूटा उसे
वो मुसाफिर तो
किसी और देश का था..
दो पल ठहरा,
लुटा, बिका
रंक्तरंजित से कदमो से
चलता गया
अपनी मन्जिल की और..
बढता गया
सब कुछ खोकर भी..
उसे गम ना था
उसे खुशी ना थी
बेबस सा बढता चला
अकिंचन
निढाल सा
कुछ पाने को..
वो मुसाफिर
किसी और देश का था..

स्वरचित :- गौरव 'देव' शर्मा