शानदार पोस्ट । भारत में शिक्षा का उद्योग जिस तरह पनप रहा है उससे यह हिसाब लगाना असंभव है कि हमें किसी इंसान या जानवर की रक्षा क्यूँ करनी चाहिये या मांस क्यूँ खाना चाहिये ?। शिक्षा प्रणाली हमेशा हमें यही सिखाती आई है कि "मांस खाना पाप है", किताबें यह समझाने में असमर्थ रही हैं कि "क्यूँ नहीं खाना चाहिये"।
तिब्बत में मांस खाया जाता है, वहां तो लामे भी खाते हैं क्योंकि वहां हरी सब्जी उगाना असम्भव है, तो यह वहां के हिसाब से अनुकूल है लेकिन शहरों में जहां हरी सब्जी प्रचुर मात्र में उपलब्ध है वहां भी दौड़ लगी है जानवरों तो काटने की, जोकि यहाँ के पर्यावरण के हिसाब से बिल्कुल ही गलत है ।
सवाल सिर्फ गाय या अन्य जानवर के मांस का नहीं बल्कि सवाल है कि "कैसे युवाओं को जागरूक किया जाएँ कि जब शहरी बाजारों में देश-विदेश की खाद्य सामग्री उपलब्ध है तो क्यूँ किसी जानवर की हत्या करी जाए"।
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आपकी शेष सभी बातों से मैं सहमत हूँ किंतु तिब्बत में माँस खाने की बाध्यता से असहमत हूँ। आज उपलब्ध परिवहन एवं भंडारण के आधुनिक साधनों से तिब्बत में पूर्णतः वनस्पति आधारित भोजन करना संभव है।
जिस क्षेत्र में यदि वनस्पति आधारित भोजन दुर्लभ हो तो मानव को उस क्षेत्र में बसना ही नहीं चाहिए।
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