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RE: रक्षा-बंधन का पर्व कितना पवित्र?

in #hindi6 years ago

आज के परिवेश में स्त्री और पुरुष का संबंध केवल सेक्स की संतुष्टि तक सीमित किया जा रहा है

इसके उलट मेरा ऐसा सोचना है कि पूर्व काल में ऐसा अधिक होता था। आज स्त्री को पहले की तरह सेक्स की वस्तु-मात्र नहीं समझा जाता। यही कारण है कि आज दुनिया में स्त्रियाँ अनेक क्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। अंतरिक्ष से लेकर राजनीति तक में, क्रीडा-क्षेत्र से लेकर उद्यमिता में, सेना हो या प्रबंधन का क्षेत्र , चिकित्सा हो या समाज सेवा, साहित्य हो अथवा सोफ्टवेयर; हर क्षेत्र में आज स्त्रियाँ अग्रणी हो, पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कार्य कर रही है।

स्त्री और पुरुष के बीच केवल स्त्री और पुरुष जैसे संबंध ही नहीं होते हैं बल्कि माँ-बेटा, पिता पुत्री, भाई -बहिन जैसे संबंध भी होते हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि संबंध अनेक प्रकार के होते हैं। आपने तो केवल विपरीत लिंग के संबंधों के ही उदहारण दिए हैं। समान लिंग के लोगों के मध्य विद्यमान संबंध से भी यह अभिप्राय निकला जा सकता था! (उदाहरणार्थ बहन और बहन या भाई और भाई का संबंध)। क्या इन सभी संबंधों में भाई-बहन के संबंध को अधिक महत्व देकर पर्व के रूप में मनाना, दूसरे सभी संबंधों को अपेक्षाकृत गौण कर देना है? हर संबंध पवित्र होता है। स्त्री-पुरुष के संबंध से आपका तात्पर्य शायद सेक्स संबंधी रिश्ते से है। लेकिन मैं यह कह रहा हूँ कि हर संबंध पवित्र है, सेक्स का संबंध भी कोई हीनता का पात्र नहीं है। किसी भी संबंध को उचित सम्मान दिया जाए तो वह पवित्रता का रूप ले लेता है।

ये ऐसा संबंध जोड़ सकती है जो खून के रिश्ते के अलावा भी जुड़ सकता है।

बिना किसी डोरी की औपचारिकता के भी भाई-बहन के संबंध के इतर अन्य संबंध भी जुड़ जाते हैं और वो भी उतने ही पवित्र होते हैं अगर मर्यादा-पूर्वक निभाये जाएँ।

ये स्त्री का सम्मान भी है नहीं तो उसे केवल भोग की वस्तु के रूप में देखा जा रहा है।

मैं नहीं समझता कि "भोग की वस्तु" की विचारधारा को रूपांतरित करने में इस पर्व की कोई भूमिका है।

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संबंध तो सभी महत्वपूर्ण होते हैं चाहे वो दोस्ती का संबंध हो या खून के रिश्ते का। पर जो भी हो रक्षा बंधन एक प्यारा त्योहार है। अब तो mothers day, fathers day, friendship day सभी मनाए जा रहे हैं। हालांकि इन सबके पीछे बाज़ार भी है। फिर भी त्योहारों के महत्व को कम नहीं आँका जाना चाहिए।
भाई-बहिन के प्रेम को मनाने का एक विशेष कारण भी था। भाई-भाई तो एक साथ मिल भी लेते थे पर प्राचीन काल में शादी के बाद बहिन को देखना बहुत मुश्किल हो जाता था। हालांकि अब वो स्थिति कम है।

स्त्री-पुरुष के संबंध से आपका तात्पर्य शायद सेक्स संबंधी रिश्ते से है। लेकिन मैं यह कह रहा हूँ कि हर संबंध पवित्र है, सेक्स का संबंध भी कोई हीनता का पात्र नहीं है। किसी भी संबंध को उचित सम्मान दिया जाए तो वह पवित्रता का रूप ले लेता है।

सभी संबंध पवित्र हैं। कोई शक नहीं। सभी को सम्मान मिलना चाहिए और वो मिलता भी है।

आज स्त्री को पहले की तरह सेक्स की वस्तु-मात्र नहीं समझा जाता। यही कारण है कि आज दुनिया में स्त्रियाँ अनेक क्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। अंतरिक्ष से लेकर राजनीति तक में, क्रीडा-क्षेत्र से लेकर उद्यमिता में, सेना हो या प्रबंधन का क्षेत्र , चिकित्सा हो या समाज सेवा, साहित्य हो अथवा सोफ्टवेयर; हर क्षेत्र में आज स्त्रियाँ अग्रणी हो, पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कार्य कर रही है।

भले ही आज स्त्रियाँ कंधे से कंधा मिलकर काम कर रही हो पर क्या आपका समाज पवित्र हो गया है? क्यों आज बलात्कार की घटनाएँ केवल बलात्कार नहीं बल्कि टॉर्चर और परपीड़न में बदल रही हैं? ये तथाकथित नारीवादी नारी को नंगा करके क्या मार्केट में एक वस्तु की तरह नहीं बेच रहें हैं? आखिर पुरुषों के शेविंग क्रीम के विज्ञापन में एक अर्धनग्न नारी की उपस्थिती क्यों जरूरी है? जाहीर है कि ये औरत को कोमोडिटी ही बना रही है।
मुझे तो लगता है कि कहीं न कहीं रक्षा बंधन का त्योहार समाज की काम भावना को अमर्यादित होते से बचाने के लिए भी था।