माँसाहार से भी घिनौना शाकाहार [खून की गंगा में तिरती मेरी किश्ती, भाग – 2, प्रविष्टि – 11]

in Qurator4 years ago

माँसाहार से भी घिनौना शाकाहार

“दूध, अंडा, शहद और मछली जैसे स्थापित पशु-उत्पादों को शाकाहारी खुराक बताना, शाकाहारियों की चालबाजी और दोहरे मापदण्डों को अपनाकर खुद को ही धोखा देने की बेवकूफ़ी है।”

‘शाकाहारी’ दूध और ‘शाकाहारी’ अण्डों का बेझिझक सेवन करने वाले ‘शुद्ध-शाकाहारी’ लोग केवल माँसाहार करने वाले माँसाहारियों से कई गुना अधिक क्रूरता और हिंसा के परोक्ष-रूप से भागीदार हैं। माँसाहारी लोग जानवर को केवल एक दिन मौत के घाट उतारते हैं। परंतु दूध और अण्डे का सेवन करने वाले ‘शाकाहारी’ लोग जानवरों को ज़िन्दगी-भर, प्रतिदिन तिल-तिल कर मारते हैं और एक दिन उसे उसके माँस के खातिर निर्दयतापूर्वक मौत के मूँह में भी धकेलते हैं। तुलनात्मक रूप से, माँस के लिए की गई उनकी एक दिन की मौत उनके रोज़-रोज़ की रोती-बिलखती ज़िन्दगी से कई बेहतर प्रतीत होती है।

“गौ-माता” की ‘दूध से धुली’ ज़िन्दगी:

क्या आप जानते हैं कि हम सभी को दूध “पिलाने” वाली गौ-माता को खुद कभी दूध नसीब नहीं हो पाता! जन्म होते ही अपनी माँ से जबरन अलग करने के बाद, अपनी माँ के दूध को तरसते बछड़े को हमारी “माता” के रूप में बड़े करने के लिए दूध से सस्ते एवं कम गुणवत्ता के वैकल्पिक खाद्य-पदार्थों को खिलाकर जैसे-तैसे बड़ा किया जाता है। “गौ-माता” को ज़िन्दगी भर के लिए एक छोटे-से संकुचित स्थान में बंधक बना दिया जाता हैं, जहाँ अपने ही मल-मूत्र के ढ़ेर में घुटने तक डूबे उसके पैर कई संक्रमण और बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। साझे-सांड की “मदद” से अथवा इतने ही पीड़ा-दायक कृत्रिम गर्भाधान के तरीके से उसे गर्भवती किया जाता है। कृत्रिम गर्भाधान करवाने के लिए सुप्रशिक्षित एवं पेशेवर पशु-चिकित्सकों की सेवाएँ लेने के बजाय किसी भी ऐरे-गेरे नत्थूराम नीम-हकीम को ये काम सौंप दिया जाता है, जो इसके लिए आवश्यक ध्यान तो दूर, न्यूनतम एहतियात भी नहीं बरतते। इसके लिए गाय के मलाशय (गुदाद्वार) से एक हाथ को कोहनी तक अन्दर डाल उसके गर्भाशय-ग्रीवा को ताना जाता है और दूसरे हाथ में ‘अच्छे’ नस्ल के चुनिन्दा सांड के वीर्य से भरी पिचकारी को गाय की योनि से अन्दर गुसाया जाता है। इस तरह बार-बार कृत्रिम गर्भाधान करा गाय को दूध बनाने की मशीन बना दिया जाता है। अत्यधिक मात्रा में दूध उत्पादन एवं गाय के थनों को स्वचालित मशीनों से दिन में दो से तीन बार लम्बे समय तक दुहने से उसके आमाशय में प्रसव-पीड़ा के समकक्ष भयंकर दर्द होता है।

दूध-उत्पादन के उपोत्पाद (प्रतिफल) के रूप में गाय के बारंबार गर्भाधान की वजह से कई अनावश्यक बछड़े पैदा हो जाते हैं, जो भयावह बेदर्दीपूर्ण शोषण का शिकार होते हैं। बछड़ा पैदा होने के अगले ही दिन उसे अपनी माँ से छिन कर अलग कर लिया जाता है ताकि वह अपनी माँ का दूध न पी जाये। माँ अपने बछड़े के विरह में कई दिनों तक विलाप भरी मर्म-स्पर्शी दहाड़े लगाती रहती हैं लेकिन उसकी मदद के लिए कोई नहीं आता। हमें तो सिर्फ उसके दूध से मतलब है न! अतः हम उसका दूध दुहने में लग जाते हैं। उसे रोज़ सवेरे-शाम कई एंटिबोडिज़, बोवैन और ओक्सिटोसिन जैसे प्रतिबंधित होरमोंस के इंजेक्शन दिए जाते हैं ताकि उसकी दूध देने की ग्रंथियों को उत्तेजित कर अधिक से अधिक दूध प्राप्त किया जा सके। इसमें से एक बूंद दूध भी इसके असली वारिस यानि कि उसके अपने बछड़े को नहीं दिया जाता। ओक्सिटोसिन के दर्दनाक इंजेक्शन हार्मोनल-असंतुलन, कमज़ोर दृष्टि, अति-रक्तस्राव, कैंसर जैसी घातक बीमारियों के लिए ज़िम्मेदार हैं। इनका इस्तेमाल अवैधानिक है परंतु हर गाँव-कस्बे में इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है।

जैसे ही गाय का दूध देना बंद होता है उसे फिर से गर्भवती बनाने की तैयारी कर दी जाती है। पेशेवर डेयरी फार्म तो ऐसी रणनीति बनाकर चलते हैं कि गाय का कोई ड्राई-पीरियड आये ही नहीं। इसलिए वे उसके प्रसव के तीन माह बाद ही उसे पुनः गर्भवती बना देते हैं और पूरे गर्भकाल में भी दूध दुहते रहते हैं। इस तरह से ये क्रम तब तक ज़ारी रहता है जब तक गाय का शरीर प्रजनन करने की क्षमता बनाये रखता है। जब लगातार दोहराई जाने वाली इस प्रक्रिया से गाय का शरीर टूटकर क्षीण व निर्बल हो चुका होता है या असहनीय शोषण से रोगग्रस्त हो जाता है तो उसे (औसतन 5-6 वर्ष की आयु में) रिटायर (सेवा-निवृत्त) कर दिया जाता है। और ये हम पहले ही बता चुके हैं कि उसका रिटायर्मेंट किसी वृद्धाश्रम में नहीं वरन बूचड़खाने में होता है!

जीवन-भर यातनाएं सहती, शोषण की अति का शिकार हमारी वन्दनीय “गौ-माता” को बूचड़खाने में आसान मौत भी नसीब नहीं होती!

25 वर्ष की औसत जीवन-आयु लेकर आया जीव महज 5-6 वर्ष की आयु में ही इंसान की गौ-माँस व चमड़े की भूख और दूध-घी की प्यास पर कुर्बान हो जाता है। पूरे जीवन दर्द और पीड़ा की असहनीय यातनाओं-भरे जीवन को जीने के बाद मिली खौफनाक मौत के बदले में आप उसे क्या देते हैं? बदले में उसे देते है “माँ” नाम की व्यंग्यात्मक उपाधि!

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इसी श्रंखला में आगे पढ़ेंक्ष, इसका भागांश-2 :

प्रविष्टि – 11: माँसाहार से भी घिनौना शाकाहार -2

धन्यवाद!

सस्नेह,
आशुतोष निरवद्याचारी

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