अण्डे का झूठा प्रोपोगेंडा -3 [खून की गंगा में तिरती मेरी किश्ती, भाग – 2, प्रविष्टि – 9]

in IndiaUnited Old5 years ago

अण्डे की पौष्टिकता के झूठे दावे:

अण्डे को एक हेल्थ-फूड, कम्प्लीट फूड या सम्पूर्ण और पौष्टिक भोजन के रूप में प्रचारित किया गया है। यहाँ तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसे मान्यता दी है। यूनिसेफ और डब्ल्यू.एच.ओ. जैसी विश्वस्तरीय संस्थाएं भी यदि दुष्प्रचार में सहभागी हो जायें तो फिर शिक्षित उपभोक्ताओं का भी भ्रम में पड़ना स्वाभाविक है। परंतु आंकड़ों का विश्लेषण करने पर इस सफ़ेद झूठ से पर्दा उठ जाता है। अण्डों की पैरवी करने वालों से कभी पूछ कर देखिये कि आखिर वे कौन-कौनसे चमत्कारिक तत्व है अण्डे में, जो हमारी निरवद्याहारी या शाकाहारी भोजन-शैली से नदारद हैं?

100 ग्राम अण्डे से मात्र 143 कैलोरी ऊर्जा मिलती है। इसमें सिर्फ 12.56 प्रतिशत प्रोटीन और 3.126 प्रतिशत सेचुरेटेड फेट (वसा) होता है। किसी भी तरह की 100 ग्राम दाल में 20 से 24 प्रतिशत प्रोटीन की दृष्टी से अंडा पूर्णतः कमज़ोर है, हाँ चर्बी बढ़ाने के लिए अच्छा है!

विटामिन-ए: 100 ग्राम अण्डे में करीब 540 आई.यू. (अन्तराष्ट्रीय इकाई) विटामिन-ए होता है। वहीँ सहजना की कुछ पत्तियों से आपको 8-10 हज़ार आई.यू. विटामिन-ए मिल जाता है और हरे धनियों की पत्तियों से 10-12 हज़ार आई.यू. विटामिन-ए मिल जाता है। एक अण्डे से लगभग बीस गुना ज्यादा!
विटामिन-बी: अण्डे में नहीं के बराबर विटामिन-बी होता है। बल्कि सभी तरह के विटामिन-बी अनाज और सब्जियों में पाए जाते हैं। इडली और डोसा खाने से भी एक अण्डे से कहीं ज्यादा विटामिन-बी मिल जाता है।
विटामिन-डी: यह शरीर में प्राकृतिक रूप से बनता है। सूरज की रोशनी से हमारा शरीर अपनी आवश्यकतानुसार विटामिन-डी का संस्लेषण खुद ही कर लेता है। जहाँ तक अंडे का प्रश्न है, आज पौल्ट्री फार्मों में अण्डों के लिए पाली जाने वाली मुर्गियों को न तो कभी धुप नसीब होती है और न ही उचित विटामिन डी युक्त भोजन।
अन्य उत्पादों से प्राप्त इस विटामिन की अधिकता होने से हमारी किडनी इसे मूत्र-मार्ग से बाहर निकाल देती है। अतः आवश्यकता से अधिक विटामिन-डी किडनी और मूत्राशय पर अत्यधिक कार्य का दबाव बनाती है जिससे पथरी होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
कार्बोहाइड्रेट और फाइबर: ये दोनों ही ज़रूरी तत्व अण्डे में नगण्य होते हैं। कार्बोहाइड्रेट से शरीर ऊर्जा प्राप्त करता है और रेशें (फाइबर) पाचन के लिए अत्यंत ज़रूरी हैं। परंतु अंडें रेशा-शून्य होते हैं।

अण्डे से मिलने वाले अनावश्यक तोहफे:

100 ग्राम वजनी एक अण्डे से आपको 372 मिलीग्राम तक कोलेस्ट्रोल भी मुफ्त मिलता है जो ह्रदय-रोग, हाइपरटेन्शन, ह्रदय-घात और स्ट्रोक जैसे गंभीर रोगों का कारण है। अण्डे में मेलेनोइन नामक एक एमिनो-अम्ल होता है। यह अम्ल विटामिन-बी को नष्ट कर ह्रदय-रोगों को बढ़ाने का कारक माना जाता है। अण्डे की बाहरी सतह पर 25-30 हज़ार अतिसूक्ष्म छिद्र होते हैं जिनके जरिये अन्दर स्थित भ्रूण सांस लेता है। यदि अंडा 30 डिग्री तापमान से अधिक पर रखा जाता है (जो कि भारत जैसे गर्म देश में अक्सर होता है) तो इन छिद्रों से कीटाणुओं का संक्रमण हो जाता है। अतः किसी भी अण्डे को 24 घंटे बाद खाने से शरीर में विजातीय कीटाणुओं के संक्रमण का खतरा पैदा हो जाता है।

अण्डे का पीत (yolk) जो कि बड़ा शक्तिदायक माना जाता है, असल में एक रासायनिक डाई की उपज होता है। मुर्गियां तब तक ऐसा पीत पैदा नहीं कर सकतीं जब तक उन्हें सूरज की रोशनी में खुला छोड़कर क्लोरोफिल-युक्त दाना न खाने दिया जाए। परंतु पोल्ट्री-फार्मों में अण्डे ऐसे पैदा नहीं होते। मुर्गियों को जीवनभर एक छोटी-सी जगह में बंद कर कृत्रिम दाना चुगाया जाता है। उसके दानों में अक्सर कार्डबोर्ड का कचरा और नर-चूजों के शरीर के टुकड़े सम्मिलित होते हैं। उन्हें जिंदा रखने के लिए एंटीबॉडीज और रोज़ एक से अधिक अण्डे प्राप्त करने के लिए कृत्रिम होरमोंस दिए जाते हैं। अतः जैसा मुर्गी का पोषण होगा, वैसे ही तो अण्डे में भी पोषक तत्व होंगे। इस प्रकार के व्यावसायीकरण के परिणाम-स्वरूप मुर्गी को दिए जाने वाले रासायनिक जहर के अंश अण्डे में भी जमा हो जाते हैं। उदाहरणार्थ फार्मों में अधिकता से प्रयोग किया जाने वाला जेंटामाईसिन रसायन अण्डों में भी पाया जाता है। ये एक नेफ्रोटोक्सिन है जो इंसान की किडनी के लिए खतरनाक है।

क्या इस तरह के निकृष्ट उत्पाद को हमारे देश की भावी पीढ़ी को मिड-डे मिल के माध्यम से थोपने की आवश्यकता है? अनैतिक और जहरीले भोजन से हम अपने मासूम बच्चों को कैसा नागरिक बनाना चाहते हैं? न तो ये स्वास्थ्य के लिए एक बेहतर खाद्य पदार्थ है और न ही ये पशुओं के प्रति हमारी नैतिकता का परिचायक है। अतः हमारे देश का कानून तो निम्न उक्ति का समर्थक होना चाहिये:

“जो भी खिलाये अण्डे, उसे खिलाओ डंडे!”

*अंडे की पौष्टिकता की माप के आधार: नेशनल न्यूट्रिंट डेटाबेस फॉर स्टेंडर्ड रेफरेंस रिलीज़ 27, एग्रीकल्चरल रिसर्च सर्विस, (यू.एस.डी.ए.)

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इसी श्रंखला में आगे पढ़ें:

प्रविष्टि – 10: माता पर कालिख पोतता “धर्म”

धन्यवाद!

सस्नेह,
आशुतोष निरवद्याचारी