ध्यान, वेदाध्ययन, दान, सत्य, लज्जा, सरलता, क्षमा, शौच, आत्मशुद्धि एवँ इन्द्रियसंयम - इनसे तेजकी वृद्धि होती है और पाप का नाश होता है।
भगवान श्रीवेदव्यासजी
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