Man and woman

in #india6 years ago

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Keeping the woman in the center for the last four decades, her developmental directions are being explored. While education, employment and health plans are being created, on the one hand efforts are being made to get rid of exploitation and atrocities. Gram Panchayat and local government have secured 33 percent reservation for women and their political participation has been ensured. Going to every area of ​​life
Women's participation is increasing. But to the woman
All efforts to push forward are not male opponents. The truth is that contemplation, meditation for the development of women
And men are the only leaders in practice. Whether they are law
In order to explain the law or to implement them in the situation. Therefore, the manifestation of female exchanges in India can not be opposed. If the man is also considered to be a woman's opponent by mistake, the purpose of those who look for the direction of female development will not succeed
Because the growth of a woman is also of male and family
It only happens to be happy. As far as
The question of being happy about himself is in his house
Is happy As a mother, sister-in-law or other relationships
It is not a separate unit from the male.
Therefore, sometimes special on female growth
Attention, it appears that we are male development
Are ignoring It should not happen. Actually
No contemplation or behavior about a woman can be thought of or done by following the man. Both complement each other. One's achievement becomes another achievement. Like the wise and the good man is happy with the husband and son who earns the money. Their achievement considers their accomplishment. Same money written in the same way
Achieving wife is also the achievement of her husband.

पिछले चार दशकों से स्त्री को केंद्र में रखकर उसके विकास की दिशाएं ढूंढ़ी जा रही हैं। एक ओर शिक्षा रोजगार और स्वास्थ्य की योजनाएं बनाई जा रही है तो दूसरी ओर शोषण और अत्याचारों से निजात दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं। ग्राम पंचायत और स्थानीय शासन में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिलाकर उनकी राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित की ही गई है। जीवन के हर क्षेत्र में जा रहा
महिलाओ की भागीदारी बढ़ रही है। परन्तु महिला को
आगे बढ़ाने के समस्त प्रयास है पुरुष विरोधी नहीं है। सच तो यह है कि महिलाओं के लिए विकास के लिए चिंतन, मनन
और व्यवहार में पुरुष ही अग्रणी रहे हैं। चाहे वे कानून
बनाने हों, स्थिति में कानून की व्याख्या करने में या उन्हें कार्यान्वित कराने में। इसलिए भारत में स्त्री विमर्श का प्रगटीकरण पुरुष विरोध में नहीं हो सकता। यदि भूल से भी पुरुष को स्त्री का प्रतिद्वंद्वी मान लिया गया तो स्त्री विकास की दिशा ढूंढने वालों का भी उद्देश्य सफल नहीं होगा
क्योंकि स्त्री का विकास भी पुरुष और परिवार की
खुशहाल बनाने के लिए ही होता है। जहां तक उसके
स्वयं के सुखी होने का सवाल है, वह अपने घर में ही
सुखी होती है। मां, बहनपत्नी या अन्य रिश्तों के नाते
वह पुरुष से भिन्न इकाई नहीं है।
इसलिए स्त्री विकास पर कभी-कभी विशेष
ध्यान देते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि हम पुरुष विकास
की अनदेखी कर रहे हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। दरअसल
स्त्री के बारे में कोई भी चिंतन या व्यवहार पुरुष से अलह करके नहीं सोचा या किया जा सकता। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। एक की उपलब्धि दूसरे की उपलब्धि बन जाती है । जिस प्रकार समझदार और अच्छा खासा पैसा कमाने वाले पति और पुत्र के साथ प्रसन्न रहती है। उनकी उपलब्धि अपनी उपलब्धि मानती है। उसी प्रकार एक पढ़ी लिखी धन
कमाती पत्नी की उपलब्धि भी पति की ही होती है।

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