बेहिसाब आतंक का गणित [प्रविष्टि - 4, खून की गंगा में तिरती मेरी किश्ती]

in #india5 years ago (edited)

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“अधिक से अधिक लाशों की खेती करने के लिए उर्वरक का काम करती है, मनुष्य की जीभ से टपकती लार। इस खेती के बीज हैं, मनुष्य की बीमार मानसिकता और इसे ज़मीन देती है उसकी भोजन की थाली। डायनिंग टेबल पर सजी थाली के पास रखे कांटे और छुरी आज इस दुनिया के क्रूरतम और सर्वाधिक घातक हथियार हैं।”

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मानव के भोजन के लिए मारे जाने वाले प्राणियों की संख्या:

समुद्री जीव90 अरब प्रतिवर्ष
चूज़े48 अरब प्रतिवर्ष
बतखें2.50 अरब प्रतिवर्ष
सुअर1.25 अरब प्रतिवर्ष
तुर्की62 करोड़ प्रतिवर्ष
खरगोश74 करोड़ प्रतिवर्ष
हंस48 करोड़ प्रतिवर्ष
गायें और बछड़े28 करोड़ प्रतिवर्ष
गिलहरियाँ6 करोड़ प्रतिवर्ष
कबूतर व अन्य पक्षी6 करोड़ प्रतिवर्ष
भैसें2.25 करोड़ प्रतिवर्ष
श्वान1.60 करोड़ प्रतिवर्ष
बिल्लियाँ40 लाख प्रतिवर्ष
ऊँट20 लाख प्रतिवर्ष
बकरियाँ और भेड़ें50 करोड़ प्रतिवर्ष
मछलियाँ130 अरब किलोग्राम प्रतिवर्ष


इनके अलावा अन्य कई जानवर जैसे कंगारू, हिरण आदि भी बेहिसाब मारे जाते हैं।

भोजन के लिए इतने सारे प्राणियों के मारे जाने के पीछे मानव की भूख नहीं, उसकी अपनी रसेन्द्रिय के प्रति पराधीनता है, स्वादिष्ट और रसीले व्यंजनों को डकारने और दूसरों को परोसने से मिलने वाली झूठी प्रतिष्ठा का भ्रमजाल है। यह सर्वविदित तथ्य है कि मात्र उसके अपने जीवन के अस्तित्व के लिए इस क़त्ल-ए-आम की कोई आवश्यकता ही नहीं है।

प्रयोगशालाएं के लिए मारे जाने वाले प्राणियों की संख्या:

बन्दर, खरगोश, चूहे, विभिन्न पक्षी, रेंगने वाले रेप्टाइल, मछलियाँ, घोड़े, गधे, मेंढ़क, छछूंदर, एम्फिबियन प्राणी, मवेशी, शुकर, वनमानुष, कुत्ते, बिल्लियाँ, बकरियाँ, हिरण, अन्य माँसाहारी और स्तनधारी प्राणी आदि ।लगभग 1 अरब प्रतिवर्ष

फ़र के लिए शोषित और मारे जाने वाले:

सब जीव मिलाकर4.25 करोड़ प्रतिवर्ष

(3.1 करोड़ मिंक, 45 लाख लोमड़ियाँ, रैकून, मुस्क्रत, बीवर, कोयपू, लाल-लोमड़ियाँ, कोयोटे, ओत्टर आदि। प्रतिवर्ष 3 करोड़ जीवों को फार्मों में प्रजनित कर पाला जाता है और फिर मारा जाता है। शेष एक करोड़ जानवरों का घेरकर निर्दयता से शिकार किया जाता है। कनाडा में तो सीलों को मारने का वार्षिक कोटा तक है जो कि हर साल चार लाख से अधिक सीलों की नृशंस हत्या करने की अनुमति देता है।)

तिस पर भी, कुल मिलाकर तीस हज़ार करोड़ प्राणियों की प्रतिवर्ष हत्या के ये औपचारिक आंकड़ें, सच्चाई से काफी कमतर हैं। तथापि आप एक पल इनको ग्राह्य करने का प्रयत्न करें। वर्ष-भर, दिन हो या रात, हर सैकंड दस गाय को मौत के घाट उतार दिया जाता है, प्रत्येक सैकंड के चालीसवें भाग के बीतने पर एक सुअर को काट दिया जाता है, इतने ही क्षण में एक खरगोश को भी चीर दिया जाता है, हर बीतते सैकंड के प्रत्येक डेढ़ हज़ारवें पल में एक चूज़े को मार दिया जाता है, हरेक सैकंड के चालीस हज़ारवें अंश में एक मुर्गी को अंडा पैदा करने के लिए विवश किया जाता है, हर छट्ठे सैकंड में एक घोड़े के प्राण हर लिए जाते हैं, प्रत्येक आठवें सैकंड में एक बिल्ली पक कर खाने के लिए तैयार हो जाती है, हर सौलवें सैकंड में एक भेड़ या बकरे को काट दिया जाता है। और ये सब महज मानव की दो इंच जिह्वा के स्वाद को तृप्त करने के खातिर! बेबस और मासूम पशुओं का संहार इतने पर ही रुकता नहीं है। प्रति सैकंड 32 जानवरों के जीवन का प्रयोगशालाओं में इस्तेमाल हो जाता है, हर पाँच मिनट में मानव प्रजाति जानवरों की एक पूरी की पूरी प्रजाति को ही नष्ट कर देती है। आज मानव का पेट, दुनिया का सबसे बड़ा श्मशान घर बना हुआ है, जिसकी जठाराग्नि प्रतिदिन अस्सी करोड़ प्राणियों का दाह-संस्कार कर रही है। करोड़ों मोबाइल श्मशान घाट अपने दो पैरों पर दुनिया के हर कोने में घूम रहे हैं। ये है मानव सभ्यता का विकास!

[उपरोक्त आंकडें अधिकतर संयुक्त राष्ट्र की संस्था एफ.ए.ओ. से लिए गए हैं। परन्तु ये केवल खेती किये जाने वाले जानवरों की संख्या है। प्रयोगशालाओं के आंकड़े केवल यू.के. के उपलब्ध थे, अतः बाकी देशों के लिए वे एक अनुमान हैं। सर्कस, चिड़ियाघर, मछलीघरों, खेल, घुड-दौड़ से जख्मी या सेवानिवृत्त घोड़े एवं सेवानिवृत्त शिकारी-कुत्ते या रक्षा-विभाग के सेवानिवृत्त कुत्ते (जिन्हें मार दिया जाता है), सुख-मृत्यु दिए गए कुत्ते एवं बिल्लियाँ अदि कई जानवर इन आँकड़ों में शामिल नहीं किये गए हैं। चुंकि मछलियों की गणना भार से की जाती है और उनके शिकार हेतु अन्य कई जलीय जीवों की भी प्रति-उत्पाद के रूप में मृत्यु होती है, इनकी गणना fishcounter,org,uk, adaptt.org और cowspiracy.com/facts आदि पर दिए तथ्यों के आधार पर अनुमानित है। सभी संख्याएं व्यावहारिक दृष्टि से औपचारिक और काफी कमतर ली गई हैं।]

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अगले अंक में पढ़ें: प्रविष्टि – 5, होलोकॉस्ट : महाविनाश की अनंत लीला

धन्यवाद!

सस्नेह,
आशुतोष निरवद्याचारी

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