मौलाना मोहम्मद अली जौहर का क़बर मस्जिद ए अक़्सा के आहते मे मौजुद है, मौलाना मोहम्मद अली जौहर एकलौते गैर-अरब और पहले हिन्दुस्तानी हैं जिन्हे (बैतुल मुक़द्दस) मस्जिद ए अक़सा के आहते मे दफ़नाया गया है| ( बैतुल मुक़द्दस किबला-ए-अव्वल है जो येरुशलम फल़स्तीन मे वाक़ए है)
मौलाना मोहम्मद अली जौहर को मस्जिद ए अक़सा (बैतुल-मुक़द्दस) के आहते मे दफ़नाने का एक मक़सद था के किसी भी तरह हिन्दुस्तान के मुसलमान को फ़लस्तीन से जोड़ा जाए वो भी मज़हबी एतबार से , जिस तरह वो मक्का व मदीना से मुहब्बत करते हैं वैसा ही येरुशलम से करने लगे. ये बात बताने के लिए काफ़ी है के मौलाना मोहम्मद अली जौहर मुसलिम दुनिया के लिए क्या माएने रखते थे ?
मौलाना मोहम्मद अली जौहर के क़बर के नाम वाली तख़्ती पर लिखा है :- “ज़रीह उल मुजाहिद उल अज़ीम मौलाना मोहम्मद अली अल हिन्दी” असल मे 1930 में तबियत ख़राब होने के बावजूद मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लियाा और उस वक्त उनका मशहूर बयान ” मेरे मुल्क को आज़ादी दो या मेरे कब्र के लिए मुझे दो गज़ जगह दे दो|
क्योंकि यहां मैं अपने मुल्क की आज़ादी लेने आया हुं और उसे लिए बिना वापस नही जाऊंगा” इस बयान ने आज़ादी के मतवालों के अंदर और जोश भर दिया, आखिर लंदन में 4 जनवरी 1931 को उनका इन्तेकाल हो गया और 23 जनवरी 1931 को बैतूल मुक़द्दस (फिलिस्तीन) में उनको दफ्न कर दिया गया|
कौन थे मौलाना मोहम्मद अली जौहर
मौलाना मोहम्मद अली जौहर का जन्म 10 दिसम्बर 1878 को रामपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। ये वही शख्सियत है जिन्होंने अपने क़लम से ही अंग्रेजों शासकों को हिला के रख दिया था। इन्होंने सन 1911 में ‘कामरेड’ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र निकाला था। इस समाचार पत्र में अंग्रेजी शासक की बहुत आलोचना की उसके हर गैर इरादे को अपने क़लम से नाकाम बनाने में सक्षम रहे इस तरह अंग्रेजी शासक के खिलाफ अपने क़लम को तलवार बना के देश की आज़ादी के लिए लड़े। तत्कालीन अंग्रेज़ सरकार द्वारा 1914 में इस पत्र पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था तथा मोहम्मद अली को चार साल की सज़ा दी गई। मोहम्मद अली ने ‘खिलाफत आन्दोलन’ में भी भाग लिया और अलीगढ़ में “जामिया मिलिया इस्लामिया”‘ की स्थापना की, जो बाद में 1920 में दिल्ली स्थापित किया गया। ये जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सबसे पहले वाईस चांसलर रहे। वो ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के संस्थापक भी थे|
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