अधिकार और कर्त्तव्य

in #kr6 years ago

कभी कभी लगता है कि जीवन बड़ा निष्ठुर हैं, खुद के साथ बहुत से अपने बिना सोचे समझे बहुत से ऐसे फैसले थोप रहे होते हैं, और हमारे पास उनको मानने के सिवा कोई चारा नहीं होता है। ऐसा हो जाने के बाद सोचते हैं, कि ऐसा क्यों किया मैने, तब अन्दर से एक आवाज आती हैं, झूठे स्वाभिमान को बचाने के लिये। या कुटुम्ब को साथ लेकर चलने के लिए।
उसके बाद के संकट भी काफी परेशान करने वाले होते हैं, पर पता नहीं क्यों, एक अजीब सी तसल्ली सी होती हैं। कि चलो, परेशानी तो हुई, पर अपना स्वाभिमान तो बचा पाये या कम से कम अपना परिवार या कुटुम्ब तो अपने साथ में हैं।
लोग कहते हैं, कि इन्सान अपने अधीकरों को लेकर तो बहुत सजग होता हैं, पर कर्तव्य पालन के समय बहुत उदासीन रहता हैं, जबकि मेरा मानना हैं, इन्सान कर्तव्यों के बन्धन में बन्ध कर ही अधीकरो का अधिकाधिक सहारा लेकर कर्तव्य पालन येन केन प्रकारेण करना चाहता हैं।
पारिवारिक, समाजिक, और न जाने कितने प्रकार के दायित्वों से दबा हुआ इन्सान अपने लौकिक जीवन की नैया को पार लगाने का प्रयास करता रहता है।

शुभ संध्या

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शुभ संध्या आपको भी @indianculture1

यहाँ आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई और मुझे उम्मीद है कि हम इस प्लेटफ़ॉर्म पर भारत संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए मिलकर काम करेंगे।

आपका स्वागत हैं @amar15

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