कर्म-फल से, कैसे मुक्त हो|
कर्म का विधान
ये कहता है कि कर्म करते समय
प्राणी के मन की स्थिति
कैसी है, क्या वो अपने कर्म के बदले कुछ चहाता है, अगर चहाता है, तब पुण्य
और पाप
का जन्म होता है, जिसके फल को प्राणी को भोगना होता है, अच्छे कर्मो का अच्छा फल
और बुरे कर्मो का बुरा
, अब याद रहे, हर एक कर्म में कुछ ना कुछ अच्छा और बुरा होता ही है, ऐसा भी हो सकता है कि एक ही कर्म
किसी एक के लिए तुम्हे पुण्य
दे, और वही कर्म
दुसरे प्राणी के लिए तुम्हे पाप
दे, इसलिए अगर तुम कर्मफल
से मुक्त होना चहाते हो, तब कर्म से जुड़े पुण्य और पाप को, समर्पण विधि
के अनुसार, मुझे समर्पित
कर दो | में तुम्हे कर्म-फल से मुक्त कर दूँगा|
- श्रीमद्भागवत गीता
According to Vidhan-of-Karma
, What is the state of mind of the creature, while working. Does he/she want something in return of that Karma
, If does, then virtue
and sin
borns. Which Yield, creature has to bear. Good-Yield
for Good deeds
and Evil
for bad deeds
. Now remember, Every Karma keep some-good
and bad
, It may also happen that Some Karma
give you virtue
for scope of some Creature
and Same Karma
give you sin
for scope of another Creature
. So If you want to be free from Karma-Yield
, Then follow Dedication-Vidhi
and serve all virtue
and sin
associated with that-karma
to me, I will free
you from that Karma-Yield
.
- Shrimad Bhagwat Geeta
excellent
Glad you like, what i am doing :-)