प्रणाम मेहता जी,
क्या खूब लिखा है भाई जी... बिलकुल सच। पर खुशी तो तब होगी जब इन बातों पर गौर करने वाला और इन बातों को अपने जीवन में लागू करने वाला कोई हो। हम सब एक ऐसे घर का सपना देखते हैं जो दुनिया के सभी सुखों से संपन्न हो , जहाँ हर आराम और सुख भोगा जा सके।
आपसी प्रेम जैसे समय के साथ-साथ खोता ही जा रहा है। बस सबमें 'अहम्' का भाव नज़र आता है 'मैं' का भाव नज़र आता है। समझाने वाले कुछ अच्छे बुद्धिजीव इस धरती पर मौजूद हैं.. पर उनकी सुनता कौन है ? सुनता है भी तो दूसरे कान से निकाल देता है।
शायद इसी को कलयुग कहते हैं.. जब सब कुछ बुरा ही बुरा हो रहा है , न तो अच्छा कोई सुनना चाहता है और न ही करना। अगर कहीं पर कुछ अच्छा देख लिया या सुन लिया तो उसकी तारीफ़ कर दी , उसकी वाहवाही में थोड़ा सा योगदान दे दिया और उसके बाद सबके लिए फिर "वही घोड़े वही मैदान"
उम्मीद करता हूँ मेहता जी आपसे एक दिन मुलाकात हो और विचारों का आदान-प्रदान हो।
मैं आपकी बात से सहमत हूँ क्योकि ये बाते सिर्फ पढने में अच्छी लगती है . आज के वक़्त में कोई भी इस बातो पर अमल नहीं करता है या फिर करना नहीं चाहता है
आप लोगों की बाते एकदम सही है, पर किसी ओर को देखकर हमें अपनी प्रकृति नहीं बदल लेनी चाहिए. हमें तो बस सही दिशा में काम करना है, कोई और क्या करता है ये उसका काम है.
हमें अपने घर को अच्छा बनाने का प्रयत्न करना चाहिए, उसके लिए बहुत त्याग, मेहनत और तपस्या लगती है. ये कोई एक दिन का काम नहीं है ये तो अनवरत चलने वाली क्रिया है.@deepakmangal @vikas07338