एक आलसी टिड्डे की कहानी, जिसने चींटी से कठिन मेहनत का पाठ सीखा।
घास के मैदान में एक टिड्डा परिवार के साथ रहता था। गर्मीयों के मौसम में टिड्डा परिवार ख़ुशी-ख़ुशी अपना समय गुजरता था, क्योँकि भोजन की कमी नहीं होती थी। पास में ही एक चींटी अपने परिवार के साथ रहती थी। चींटी की जिंदगी परिश्रम भरी थी। पूरा परिवार सुबह से शाम तक दूर-दूर से खाने की चीजें लाकर बिल में जमा करता रहता था।
एक दिन टिड्डे ने चींटी से कहा, तुम गर्मी का आनंद क्यों नहीं लेते? परिवार के मुखिया चींटे ने कहा, दोस्त, अगर हमने अभी कठोर मेहनत नहीं की, तो आने वाली सर्दी में हम जीवित नहीं रह पाएंगे। अभी तो भोजन उपलब्ध है। ऐसे में, भविष्य के लिए भोजन का संग्रह कर लेना ही बुद्धिमानी है।
टिड्डे ने कहा, सर्दी आने में अभी देर है। तुम इतना अधिक क्यों सोचते हो? चींटी और उसका परिवार पूरी गर्मी अनाज के दाने ढोने में लगा रहा। जबकि टिड्डे का मानना था कि चींटी और उसका परिवार बेहद मुर्ख है, जो इस मस्त मौसम में भी मेहनत कर रहे हैं।
सर्दी आ गयी और पूरा मैदान बर्फ से ढक गया। भोजन दुर्लभ हो गया। जीव-जन्तुओ से लेकर कीड़े-मकोड़े तक गर्म जगहों की तलाश करने लगे। टिड्डा परिवार भोजन की तलाश में भटकने लगा। टिड्डा देखता की चीटी अपने के साथ अपने गर्म बिल में आराम से रह रही है, और उसके उसके यहां खाने-पीने की कमी नहीं है।
एक दिन चीटी के पास पहुँचकर टिड्डे ने कहा, हमारे परवार को भी अपने बिल में जगह दो। चीटी ने कहा, तुम आलसी हो। जब मेहनत की जरुरत थी, तब तुम नाच गा रहे थे। हमने मेहनत की, इसलिए हमारे पास सर्दी के लिए पर्याप्त भोजन है। मुझे माफ़ करना। अब टिड्डे को पछतावा हुआ। वह सही समय पर मेहनत करता, तो आज भटकना नहीं पड़ता।
बैठे रहने के बजाय भविष्य के लिए सोचना बुद्धिमानी है।
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