पिंजरे में रहने के अभ्यस्त हो चुके एक तोते की कहानी, जिससे जीवन की अहम सीख मिलती है।
कबीर दफ्तर से लौटा, तो बहुत नाराज़ था। मां ने पूछा, आज डिनर में क्या खाओगे? कबीर उन्ही पर बरस पड़ा, आप एक दिन अपने मन से खाना नहीं बना सकती क्या? मां समझ गई की यह गुस्सा उसके दफ्तर का है। ऐसा पहले भी कई बार हो चूका था। मां ने कहा, तुम्हे अगर अपना दफ्तर अच्छा नहीं लगता, तो नौकरी छोड़ दो। दूसरी नौकरी मिल जायेगी। कबीर ने कहा, अगर इतना आसान होता, तो दो साल पहले ही छोड चूका होता।
मां कबीर को एक कहानी सुनाने लगी, एक आदमी पहाड़ो पर सैर करने गया। वह हसीन वादियों का आनंद ले ही रहा था कि एक तेज़ आवाज़ पहाड़ो से टकराकर गूंजती हुई उसके कानों में पड़ी। ऐसा लगा, जैसे कोई चीख रहा हो, आज़ादी.....आजादी। वह ढूढ़ने लगा की आखिर यह आवाज़ कहां से आ रही है। उसे पिंजरे में बंद एक तोता मिला, जो चिल्ला रहा था, आज़ादी.....आज़ादी......। मुस्कुराते हुए उसने दरवाज़ा खोल दिया।
पर तोता डरकर अंदर की तरफ भाग गया। आदमी काफी देर तक उसे पुचकारता रहा। पर तोता पिंजरे में बैठा वही राग अलापता रहा। काफी कोशिश के बाद आदमी ने हाथ अंदर डाला, तोते को पकड़ा और बहार निकालकर पहाड़ से नीचे की तरफ छोड़ दिया, ताकि तोता उड़ जाये। ऐसा करने से उसे बहुत सुकून मिला।
पर सुबह होने से पहले उसे फिर वही आवाज सुनाई दी। वह दोबरा पिंजरे के पास लगा, पर देखा की पिंजरे का दरवाजा खुला है और तोता वापस पिंजरे के अंदर बैठकर आज़ादी की रट लगा रहा है। मां बोली, बेटा, हमारा मन भी इस तोते की तरह है, जो पिंजरे में रहने का अभ्यस्त हो चूका है। वह सारे कस्ट सह सकता है, पर पिंजरा छोड़कर जाने को तैयार नहीं हो पाता। पिंजरा छोड़ोगे, तभी तो पता चलेगा कि बाहर की दुनिया कितनी खूबसूरत है।
हमारी समस्याओ का समाधान हमें ही ढूंढना चाहिए।
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