एक तोते की कहानी, जिसने काफी संग्घर्ष के बाद अन्तः एक दिन पिंजरे से आज़ादी पाई।
एक व्यापारी ने एक तोता पाल रखा था। उसने तोते के लिए सोने का पिंजरा और सोने की कटोरी बनवाई थी। पर वह कभी तोते को आज़ाद नहीं करता था। एक बार व्यापारी की व्यवसाय के सिलसिले में दूर जाना था। उसने तोते से कहा, रास्ते में तुम्हारा घर यानी जंगल पड़ेगा। क्या तुम अपने प्रियजनों को कोई सन्देश भिजवाना चाहते हो? तोता बोला, उनसे कहना मैं उन्हें याद करता रहता हूं। जाने कब मैं उन्हें देख पाऊंगा।
तोते की बात सुनने के बाद व्यापारी घर से निकल पड़ा। कुछ दिनों के बाद वह उस जंगल में पहुँच गया, जहां तोते का परिवार रहता था। ठंडी हवा और पक्षियों की चहचहाहट उसे आनन्दित कर रही थी। तभी उसे तोते के प्रियजन दिखे। व्यापारी ने तोते का संदेश उन्हें सुनाया और कहा, अगर आप लोगो का मेरे तोते के लिए कोई सन्देश हो, तो बताइए। मेरा तोता यह सुनकर खुश होगा। तभी तोते की संगिनी चिल्लाई और पेड़ की डाल से उलटे मुंह जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ी।
व्यापारी भौचक्का देखता रह गया। अपना काम पूरा कर व्यापारी वापस घर लौटा। तोते ने उनसे पूछा, क्या आप मेरे परिवार वालो से मिले? उन्होंने क्या कहा? सकपकाये व्यापारी ने तोते को पूरा वाकया सुनकर कहा, मैं आज तक हैरत में हूं कि तुम्हारा सन्देश सुन तुम्हारी संगिनी ने कैसे एकदम अपन प्राण त्याग दिए।
यह सुनते ही तोता चिल्लाया और पिंजड़े के ऊपरी भाग में बने झूले से धड़ाम से नीचे गिर गया। यह देख व्यापारी रोने लगा, फिर पिंजड़ा खोलकर तोता को अपने हाथों में ले लिया। जैसे ही व्यापारी ने तोते को पिंजड़े से बाहर निकाला, तोते ने अपने पंख खोले और यह कहते हुए फुर्र से उड़ गया कि मेरे प्रियजनों का संदेश मुझ तक पहुचने के लिए धन्यवाद।
कभी-कभी सफल होने के लिए उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है।
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