मानवता संरक्षण का अस्त्र : अहिंसा (भाग # ३ ) | The War of Humanitarian Conservation : Non-violence (Part # 3)
आज जीवन बहुत जटिल हो गया है । मनुष्य की आवश्यकताएँ निरंतर बढ़ती जा रही है । उनकी पूर्ति में वह दिन-रात लगा रहता है । अपनी आवश्यकता-पूर्ति में वह यह नहीं देखता कि इससे किसी का अहित हो रहा है । उसमें स्वार्थान्धता आ गई है । यह स्वार्थान्धता पहले दर्जे की हिंसा है । पाप है । अहिंसा मनुष्य को शांति देती है जबकि हिंसा बेचैनी के सिवा कुछ नहीं देती । आज चारों तरफ हिंसा है इसलिए सब बेचैन हैं । जो स्वार्थी हैं, हिंसक हैं, उन लोगों ने सबको दु:खी कर रखा है । जो हिंसा नहीं करना चाहते उनको भी हिंसक लोग हिंसा करने पर मजबूर कर देते है । उदाहरण के लिए किसी सेठ ने किसी मजदुर की मजदूरी मार ली और मजदुर ने भूख से मजबूर होकर किसी अन्य मजदुर की रोटी चुरा ली । हिंसा सेठ ने की और इस मजदुर को भी हिंसा करने पर मजबूर कर दिया ।
हिंसा कोई भी करे – धनी या निर्धन, जितनी बड़ी हिंसा होगी उतना ही बड़ा पाप और सजा उसे भोगनी होगी । मजदुर ने मज़बूरी में रोटी की चोरी की । उसे भी पाप तो लगेगा, बेचैनी होगी – आत्मा धिक्कारेगी लेकिन वह सेठ जो जिंदगी भर मजदूरों का पारिश्रमिक मारता रहा है, वह कभी सुख की नींद नहीं सो सकता । जिन्दगी ‘हाय पैसा, हाय पैसा’ में ही निकल जाएगी और शारीरिक श्रम किए बिना खाएगा तो नाना प्रकार के रोगों (मोटापा, ब्लड प्रेशर आदि) से ग्रसित होकर बिना पूर्ण आयु भोगे ही मर-मरा जाएगा । आवश्यकता से अधिक एक दिन के लिए भी अन्न-धन का संग्रह करना परिग्रह है, हिंसा है । संग्रह की भावना से ही संसार में हाय तोबा मची हुई है ।
कई लोगों का मानना है कि जनसंख्या बहुत अधिक हो गई है और धरती से उत्पन्न चीजें सीमित हैं, इसलिए लोग अभावग्रस्त हैं, दु:खी हैं । पर यह बात पूर्णतया ठीक नहीं । आज भी धरती से प्राप्त वस्तुएं अन्नादि जनसंख्या की अपेक्षा इतनी कम नहीं है कि लोग भूखों मरें । जैसे रूस में खाद्य पदार्थों की कमी नहीं । वहां कई (३० – ४०) वर्षों से सभी जरुरी खाद्य पदार्थों की कीमतें स्थिर हैं । तो क्या वहां इतने वर्षों से जनसंख्या नहीं बढ़ी ? नहीं, ऐसा नहीं है । बात यह है कि वहां की समाजवादी सरकार किसी नागरिक को संग्रह नहीं करने देती । अत: जो कुछ भी चीजे पैदा की जाती है वे नागरिकों में बिना किसी पक्षपात के बराबर-बराबर बंट जाती हैं और वहां के लोग खान-पान और रहन-सहन के मामले में सुखी है ।
हमारे देश में मुठ्ठी-भर लोगों के पास अन्न-धन के भण्डार हैं और अधिकांश जनता दु:खी और अभावग्रस्त है । यह इन मुठ्ठी-भर लोगों की हिंसा है । ये लोग जब अहिंसा का अर्थ समझेगे और इसे अपने जीवन में उतार लेंगे तो देश में कोई दु:खी नहीं रहेगा । किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि सिर्फ धनी लोग ही हिंसा कर रहे है या अहिंसा की उपेक्षा कर रहे हैं । यदि हर व्यक्ति अपने गिरेबान में झांककर देखे तो उसे पता लगेगा कि वह कही-न-कही हिंसा करता है । चंद अहिंसक लोग भी संगठित होकर हिंसा के विरुद्ध कार्य करें तो हिंसकों को हथियार डालने ही पड़ेंगे । यदि अहिंसा के द्वारा हम विदेशी शासकों के चुंगुल से अपने देश को मुक्त करा सकते है तो अपने ही भाइयों को ठीक रास्ते पर ले आना कौनसी बड़ी बात है ।
वस्तुतः आज विश्व को सबसे अधिक आवश्यकता अहिंसा की है । यदि अहिंसा को जीवन में नहीं उतारा गया तो आज का जीवन नरक बन जाएगा । अहिंसा मनुष्य को सब जीवों से प्रेम करना सिखाती है । एक अहिंसक की दृष्टि में मनुष्य मनुष्य में भेद नहीं है । संक्षेप में वह किसी को किसी प्रकार का कष्ट दे ही नहीं सकता क्योंकि किसी के कष्ट को वह अपना कष्ट समझता है । इसलिए गांधीजी ने एक बार हरिभाऊ उपाध्याय से कहा था – “हरिभाऊ ! मेरे सामने कोई विधवा स्त्री आती है तो मुझे लगता है कि मैं ही विधवा हूँ ।”
आज मनुष्य की मनुष्य के प्रति आत्मीयता ख़त्म होती जा रही है । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है किन्तु उसमें सामाजिकता के भावों की कमी होती जा रही है । एक ही परिवार के सदस्य एक-दुसरे से लड़-झगड़ रहे हैं । एक-दुसरे के प्रति आस्था और विश्वास मिटते जा रहे हैं । यह सब हिंसात्मक प्रवृत्तियों के कारण हो रहा है । इन सबका एक ही उपाय है – अहिंसा की महत्ता को समझकर विश्व में अहिंसा का प्रचार-प्रसार किया जाए और अहिंसक लोगों के संगठनों द्वारा हिंसात्मक कार्यवाहियो के विरुद्ध एक आन्दोलन चलाया जाए । आधुनिक युग में यदि मानवता को बचाने का कोई अमोघ अस्त्र है तो वह है अहिंसा !
“अहिंसा परमो धर्म: ।”
हिंसा तथा जीवन तो स्वत: विरोधी है । यह बताने की आवश्यकता ही कहां रहती है कि हिंसा है तो फिर जीवन नहीं और जीवन है तो फिर हिंसा नहीं । अहिंसा तो अनिवार्य स्थिति ही हुई जीवन की ।
इस अकाट्य तथ्य की धारणा के पश्चात् हम अहिंसा के महत्त्व पर विचार करें, विशेष रूप से आधुनिक सन्दर्भ में । अहिंसा जैन धर्म तथा दर्शन का आधारभूत लक्षण या स्तम्भ है । यह वह नींव है जिस पर जैन दर्शन का भव्य एवं अद्वितीय प्रासाद स्थित है । यह वह प्रासाद है जहां सुख एवं शांति है – ऐसा शाश्वत सुख तथा ऐसी शाश्वत शांति जिसका फिर कभी कहीं अन्त नहीं है ।
ऐसी स्थिति किसी अन्य धर्म में नहीं है । संसार में अनेक धर्म पहले भी थे, अब भी है, आगे भी रहेंगे । इनमें केवल जैन धर्म ही है जो अकाट्य रूप से अनादि है । वर्तमान में विश्व में जो प्रमुख धर्म प्रचलित हैं, वे हैं – हिन्दू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म । हिन्दू तथा जैन धर्म, इन दोनों के अनुयायी अपने-अपने धर्म को अनादिकालीन होने का दावा करते हैं, परन्तु खोज करने पर प्रकट होता है कि वेदों एवं भागवत आदि प्रामाणिक ग्रंथों में, जो कि हिन्दू धर्म शास्त्रों में अधिक से अधिक प्राचीन माने गए हैं, उनमें जैनियों के वर्तमान तीर्थंकर चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के सम्बन्ध में उल्लेख मिलते हैं । इससे सहज ही यह सिद्ध हो जाता है कि इन दोनों में भी जैन धर्म ही अधिक प्राचीन है ।
इससे जुड़ी पिछली दो पोस्टों का जुड़ाव है (the link of last two parts of this topic are) -
- https://steemit.com/life/@mehta/or-the-war-of-humanitarian-conservation-non-violence-part-1
- https://steemit.com/life/@mehta/or-the-war-of-humanitarian-conservation-non-violence-part-2
The English language translation from help of Google language tool as below:
Today life has become very complicated. Human needs are continuously increasing. In his fulfillment, he is engaged day and night. In his need-in fulfillment, he does not see anybody being harmed by it. Swarthandhata has come in it. This selfishness is a first-rate violence. Is sin. Nonviolence gives peace to humans, whereas violence gives nothing but restlessness. Today there is violence everywhere so everyone is restless. Those who are selfish, are violent, they have made everyone sad. Violent people also force violence to those who do not want to commit violence. For example, some Seth wages a laborer and the laborer stole the bread of another worker by being forced from hunger. Violence Seth and forced this laborer to commit violence.
Any violence - rich or poor, the bigger the violence, the greater the sin and the punishment it will have to suffer. The worker steadfastly stole the bread. He will also feel the sin, will be restless - the soul will reprimand, but Seth, who has been working for the wages of the laborers, can not sleep forever. Life will go out in 'Honey Money, Honey Money' and if you eat without doing physical work then you will die only if you suffer from various diseases (obesity, blood pressure etc) without full life. For more than one day, collection of food grains is a charity, violence is there. It is a feeling of collection that has created a problem in the world.
Many people believe that the population has grown a lot and things generated from the earth are limited, so people are depressed, sad. But this thing is not quite right Even today, the items obtained from earth are not so low than the population of the people that people die of hunger. Like Russia's lack of food items. There are many (30 - 40) years of prices for all the essential food items stable. So did not the population increase for so many years? No. It's not like that . The thing is that the socialist government there does not allow any citizen to collect. Therefore, whatever things are produced, they are divided equally among the citizens without any discrimination, and the people there are happy about food and living conditions.
A lot of people in our country have food and resources and most of the people are sad and unhappy. It is violence of people around these handfuls. When these people understand the meaning of non-violence and take it into their life then there will be no sadness in the country. But this does not mean that only rich people are doing violence or ignoring the non-violence. If every person glimpses in his throat, then he will know that he does violence or something. Some non-violent people also get organized and act against violence, then the Hindus will have to put weapons in it. If by nonviolence we can liberate our country from the hands of foreign rulers, then what is the big thing to take our own brothers on the right path?
In fact, today the world needs nonviolence to be the most important. If nonviolence is not brought down in life then today's life will be hell. Nonviolence teaches humans to love all living beings. In the view of a non-violent man, there is no difference in human beings. In short, he can not give any kind of pain to anyone because he considers his suffering as a pain. Therefore, Gandhiji once told Haribhau Upadhyay - "Haribhau! When a widowed woman comes in front of me, I feel that I am the widow. "
Today the intimacy of human beings is going to end. Humans are social creatures but there is a lack of socialism in them. Members of the same family are fighting each other. Faith and beliefs are being eradicated towards one another. All this is happening due to violent tendencies. The only remedy for all this - by understanding the importance of non-violence, is to propagate non-violence in the world and to carry out a movement against the violent actions by non-violent organizations. In the modern era, if there is any unarmed weapon to save humanity, then it is non-violence!
"Ahimsa Paramo Dharma:."
Violence and life are self-opposing. Where there is a need to tell that there is violence then there is no life and there is life then there is no violence. Nonviolence was an essential condition of life.
After the notion of this irrefutable fact, we consider the importance of non-violence, especially in the modern context. Non-violence is the basic symptom or pillar of Jainism and philosophy. This is the foundation on which the grand and unique prasad of Jain philosophy is located. This is the Prasad where there is happiness and peace - such eternal happiness and eternal peace which is never ending.
Such a situation is not in any other religion. There were many religions in the world, they are still there, they will stay ahead. Among them, there is only Jainism which is irrevocably non-existent. The major religions present in the world are: Hinduism, Jainism, Buddhism, Christianity and Islam religion. Hindus and Jainism, the followers of both of them claim to have their religion unadulicular, but after discovering that the Vedas and Bhagwat etc are in authentic texts, which are considered as ancient as the Hindu scriptures In them, the current Tirthankar of the Jains gets mentioned in connection with Lord Rishabhdev, the first pilgrimage of the Chaubisi. It is instantly proven that in both of these Jainism is more ancient.
संसार में अगर कोई शांति ला सकता है तो वह अहिंसा ही है। आजकल कुछ लोग ही ऐसे है जो अहिंसा को अपनाते है।
महात्मा गांधी परम अहिंसावादी थे, उन्होंने जो अंहिसा का मार्ग बताया हम लोगों को उसका पूरी श्रद्धा से पालन करना चाहिए। मनुष्य तभी उन्नति कर सकता है जब तक वह हिंसा नही करता है।
हिंसा मनुष्य को लाचार व क्रोधित सिद्ध करती है।
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जो लोग कमजोर होते हैं वही लोग हिंसा को अपनाते हैं क्योंकि इनको यही रास्ता आसान लगता है। आपने यह बात सही कही की:
"आज मनुष्य की मनुष्य के प्रति आत्मीयता ख़त्म होती जा रही है ।"
अभी तो मनुष्य को भविष्य में बहुत बदलता देखा जायेगा।
Nonviolence is indeed the best action of religion. The answer depends on what the meaning of religion is and what its purpose is to follow. The ancient Indian thinkers have voted that the ultimate purpose of human life is to achieve liberation. That is, to free yourself from the continuous cycle of life and death. For this, we have to save ourselves from the spiritual uplift of our own soul and this world. It has been their opinion that for spiritual refinement and doing good deeds towards the rest of the world.
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इस के लिए हमारी जिंदगी में संतोष होनI चाहिए जो की शायद आज के युग में सम्भव नहीं .हमारी इच्छा इतनी बढ़ती जाती है की हमे जो भी मिल जाए कम ही लगता है.
मेरे लिए कितना आवश्यक है ये किसी को पता ही नहीं है, जिनको ये पता उनकी जिंदगी में कुछ सकून है , पर ऐसे लोग बहुत कम है?
@mehta Today we live in a world where people just think about selfishness. The exact information you have provided is accurate. Thank you so much for your efforts. To agree with you, we want to say that we can not forget about building a beautiful world.
@mehta अहिंसा जीवन जीने का सबसे अच्छा मार्ग है ये सभी जानते है किन्तु आज के युग में अहिंसा एक शब्द मात्र रह गया है ,कोई इसको अपनाना नहीं चाहता और अगर कोई इसको अपनाने का प्रयास भी करता है तो कुछ लोग उसको अपनाने नहीं देते, किसी न किसी प्रकार से उसके मार्ग में बढ़ा डाल ही देते हैं,
apke sabhi post jivan ke liye kuch sikha dete hy
Good one .
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@mehta sir apki steemit pr success ka raj kya h me aapki post ko bahut lick or upvote krta hun
Plz tell me
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We are damaging this word using violence parth
"Ahinsa Paramo Dharma:" This policy-word is often heard from people's mouth. In ancient times, Jain Tirthankars, in their year of India, determined and kept their duties by keeping Ahinsa in the center. In the last Tirthankar, almost contemporary (after some time) of Lord Mahavira, Mahatma Buddha even preached Ahimsa with the various duties of about two and a half thousand years ago to the then society.
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Great post!
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mehta saab aap ka post follow kar raha hoon , agar kuch kaam online kar sakte ho to bolo, thank you
Nonviolence can be stopped by controlling anger
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wanting is the root of all suffering
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