नि:स्वार्थ भाव से की मानव सेवा प्रभु सेवा के समान ही है
पीड़ित मानवता की सेवा ही प्रभु सेवा है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी कमाई का कुछ अंश निर्धन और निर्बलों में व्यय करना चाहिये। इससे परोपकार करने वाले का जीवन सुखी रहता है। यह आपका ब्लॉक बहुत ही अच्छा है मेहता जी आपके विचार बहुत अच्छे है आप चाहे तो हमारे ब्लॉक पर भी उप्वॉट कर सकते है दन्यवाद मेहता जी
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