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आपकी बात कुछ हद तक ठीक हो सकती है, पर मैं आपकी बात से पूरी तरह से सहमत नहीं हूँ.
समीक्षा के लिए शुक्रिया.

@yutika -कर्ण ने कोई गलती नहीं की , जो आप के बुरे वक्त में साथ दे वही आप का सच्चा मित्र होता है , दुर्योधन ने कर्ण को उस समय अपना मित्र बनाया जब सभी उसके सूतपुत्र होने का मजाक उड़ा रहे थे , रही बात धर्म और अधर्म की तो दुर्योधन का साथ छोड़ना भी अधर्म होता।

आज कर्ण को सभी दानवीर कर्ण बुलाते है महादानियो में उसका नाम लिया जाता है किन्तु अगर कर्ण पांडव के साथ हो जाते तो आज संसार उनको महादानी नहीं अपितु एक मतलबी और धोकेबाज कर्ण के नाम से जानती। (ऐसा मेरा मानना हैं)