सेक्युलरिज़्म व मीडिया के तहर्रुश की पैदाइश है मॉब लिंचिंग

in #mgsc6 years ago

वैसे से तो जब से भारत में नरेंद्र मोदी सरकार आयी है तभी से भारत के विपक्ष की राजनीति और उनके द्वारा समर्थित पत्रकारिता में बड़े परिवर्तन देखने को मिले हैं।

लेकिन जो सबसे बड़ा परिवर्तन हुआ है वह है भारतीय मीडिया, जिसमें कांग्रेस के इकोसिस्टम व वामपंथियों का आधिपत्य है, द्वारा शब्द या शब्दों को पिरोकर नये नये नारों को जन्म देना। ये जहां एक नारेबाज़ी का काम करते है वहीं उनका प्रयोग एक निश्चित वर्ग को मीडिया ट्रायल द्वारा कठघरे में खड़ा करने के लिये भी किया जाता है।

वो चाहे मीडिया द्वारा गढ़ा 'असहिष्णुता' हो या 'अवार्ड वापसी', वह चाहे 'एन्टी दलित' हो या 'वीमेन नॉट सेफ' या फिर 'जस्टिस फ़ॉर...' या 'टॉक टू मुस्लिम', ये सब एक बैनर है जिसके तत्वावधान में समस्त राष्ट्रवादिता व हिंदुत्व की विचारधारा की विरोधी शक्तियों को, सेक्युलरिज़्म की छाया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की जाती है।

ये सारे शब्द जब भी हैश टैग के साथ या अखबारों और टीवी पर सुर्खिया बनते हैं, आप तभी समझ जाते है कि किसी घटना को मुस्लिम/ ईसाई के पापों को छुपाने व भारत या हिन्दू विरोधी रंग दिया जा रहा है। इसी ही कर्म में मीडिया ने एक और शब्द को प्रमुखता देनी शुरू कर दी है और वह है 'मॉब लिंचिंग'।

वैसे तो यह शब्द पहले भी यदा कदा सुनाई पड़ जाता था लेकिन तब उसका अर्थ होता था कि 'लोगों ने मिल कर सामूहिक रूप से किसी अपराधी या संदिग्ध को पीट पीट कर मार डाला'। लेकिन अब 2018 आते आते इसका अर्थ, 'एक मासूम मुसलमान को अपराधी हिन्दुओं की भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला', हो गया है।

अभी अलवर में एक घटना हुई जिसमें एक व्यक्ति जो दो गायें लेकर जा रहा था उसको गौ तस्करी के संदेह में गुस्साई भीड़ ने पीट कर मार डाला।

अब यह घटना वाकई मॉब लिंचिंग का ही मामला है और कायदे से मीडिया को इस घटना की गहराई में जाकर इसके सभी पक्षों को उजागर करना चाहिये लेकिन मीडिया और सेक्युलरों ने इसे अब सिर्फ एक मुस्लिम की हिन्दुओं की भीड़ द्वारा पीट पीट कर मार डालने का मामला बना दिया है। मेरे लिये मीडिया इसको किस तरह से दिखा रहा है और लोग इसको किस तरह देखना चाहते हैं, बिल्कुल भी महत्व नहीं रखता है। मेरे लिये यहां महत्वपूर्ण यह है कि इस मॉब लिंचिंग में मुस्लिम बेचारा क्यों बेचा जा रहा है और हिन्दू को ही अपराधी क्यों माना जा रहा है?

आखिर यह घटना हुई ही क्यों? क्या यह घटित होने से बचा जा सकता था? इसमें गायों के साथ वाले मुस्लिम रकबर की मासूमियत और हिन्दुओं की आहत संवेदनाओं का क्या कोई ख्याल रखा गया है?

इन सारे सवालों के जवाब तो एक अनुच्छेद में आ जायेंगे लेकिन उससे पहले लिंचिंग का शाब्दिक अर्थ क्या है यह समझ लीजिये।

लिंचिंग का अर्थ है 'गैर कानूनी ढंग से प्राणदण्ड'। इसका अर्थ यह हुआ कि जिसकी मृत्यु हुई है उसको भीड़ द्वारा, कानून को हाथ में लेकर दिया गया प्राणदण्ड है।

अलवर में जो रकबर के साथ हुआ वह प्राणदण्ड ही था क्योंकि उस भीड़ का कहीं न कहीं उस कानून से विश्वास उठ गया था, जिसकी नैतिक जिम्मेदारी थी वह रकबर खान जैसे तत्वों को अपराध करने से रोकता।

अब तो यह तथ्य सामने आ गया है कि रकबर खान एक पेशेवर गौ तस्कर था और उसके खिलाफ पहले से मुकदमे दर्ज थे और घटना के वक्त ज़मानत पर जेल के बाहर था।

रकबर क्योंकि एक गौ तस्कर था और एक मुलजिम था इसलिए वह एक मासूम मुस्लिम है और हिन्दु, जिनके लिये गाय से मां के स्पंदन का संचार होता है, वह अपराधी हैं।

यहां पर कोई इस बात को नहीं होने देना चाहता कि आखिर यह घटना हुई क्यों और मीडिया इस कथानक को बनने क्यों नहीं देना चाहता है।

मेरा स्पष्ट मानना है कि यह घटना कभी भी नहीं होती यदि मुस्लिमों का एक वर्ग हिंदुओं की भावना को समझते हुये, गौ मांस से परहेज़ रखता और जानबूझ कर हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने के लिये गौकशी न करता। लेकिन यह होता रहेगा क्योंकि भारत के सेक्युलरिज़्म ने इनको गौ हत्या करने पर संरक्षण ही दिया है और अब इसकी प्रतिक्रिया आने से रोका नहीं जा सकता है।

आज भारत का मीडिया और सेक्युलरिज़्म रकबर के शरीर की चोटों की गिनती बता रहा है लेकिन क्या यह गौ तस्कर कैसे गायों के पैरों को तोड़कर, ट्रकों में भरकर भेजते हुये दिखाता है या उन गायों की टूटी हड्डियों की गिनती करता है?

मुझे आज, सेक्युलरिज़्म की विधा को अपनाते इस मॉब लिंचिंग को संरक्षण देना समझ में आ रहा है। मुझको यह लिखते हुये जहां अपार कष्ट है, वहीं संतोष भी है कि हिंदुओं ने भी मुस्लिमों से उनके खेल को खेलना सीख लिया है।

वे दिल्ली की सड़कों पर, मुस्लिमों द्वारा, डॉ नारंग की गई मॉब लिंचिंग, जिसको मीडिया ने 'रोड रेज' कह कर बेचा था, से सीखना शुरू कर दिया है। हिन्दू भीड़ की यह असहिष्णुता, न्यायपालिका की खोखली प्रकृति और अकर्मण्य कानून से उपजी है।

यदि गौ हत्या व मांस भक्षण पर लोगों ने हिन्दू बहुसंख्यकों की संवेदनाओं का सम्मान किया होता तो यह असहिष्णुता के बीज कभी भी पल्लवित नहीं होते। आज का हिन्दू जो यह देख रहा है कि मुस्लिमों की भीड़ 'तहर्रुश' के इस्लामिक खेल को अरब की सड़कों से उठा कर योरप में भी खेल रहा है, वह अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये, इससे अछूता कैसे रह सकता है?

आज भारत में जिसको मॉब लिंचिंग कहा जा रहा है उसका असली अपराधी भारत का सेक्युलरिज़्म, मीडिया, कानून व न्यायपालिका है। यदि इन सबने सबको समान समझा होता तो आज यह नहीं हो रहा होता।

आज यदि जनसमुदाय की भावनाओं का जानबूझ कर उल्लंघन होगा तो यह तय मानिये, भीड़तन्त्र कानून से ऊपर उठ कर प्राणदण्ड देगी।

#Mgsc#

Sort:  

Hi! I am a robot. I just upvoted you! I found similar content that readers might be interested in:
https://www.nhl.com/player/evgeny-kuznetsov-8475744

Congratulations @jasy90! You received a personal award!

Happy Birthday! - You are on the Steem blockchain for 1 year!

You can view your badges on your Steem Board and compare to others on the Steem Ranking

Vote for @Steemitboard as a witness to get one more award and increased upvotes!