भय इंसान की स्वाभाविक क्रिया हैं। जिस प्रकार हर्ष, शोक, हंसना, रोना स्वाभाविक परिस्तिथियों के अनुसार होता हैं, उसी प्रकार डर भी स्वाभाविक आचरण हैं।
किन्तु हमारे ऋषि मुनियों ने इस स्वाभाविक क्रिया का कारण व निराकरण हमें सहज ही बता दिया हैं।
जैसा कि हम सभी जानते हैं, एक छोटा बालक किसी से नही डरता। वो अग्नि को मुट्ठी में पकड़ लेता हैं। हिंसक पशु का भी खिलखिलाकर स्वागत करता हैं आदि आदि ..
पर वही बालक बड़ा होकर डरने लगता हैं, क्यों ?
क्योकि डर उसके अंदर पैदा किया जाता हैं, प्रकृति ने हमे जन्मजात डर का गुण नही दिया।
बालक को उसके परिजनों द्वारा डरना सिखाया जाता हैं। ये मत करो, ऐसा हो जाएगा। वो मत करो, वैसा हो जाएगा। और इस प्रकार बालक डरना शुरू हो जाता हैं।
है। हमारे ऋषियों ने बताया कि, छोटा बालक ईश्वर का स्वरूप होता हैं, इसलिए उसके अंदर डर नही होता।जैसे जैसे बड़ा होता हैं, उसमे सांसारिक समझ हावी होना शुरू होती हैं। ईश्वरीय तत्व कम होता जाता हैं और उसमें डर पैदा होना शुरू हो जाता हैं। जब वो ज्यादा उम्र का होता जाता हैं, संसार के भौतिक चक्र में पूरी तरह फंस जाता हैं, ईश्वरीय तत्व विलुप्त प्रायः हो जाता हैं, तब वो बहुत ज्यादा डरने लगता हैं।
वो ऐसी घटनाओं से आसङ्कित रहने लगता हैं, जो उसके बस की हैं ही नही। जैसे मेरी या मेरे किसी अजीज के साथ कोई घटना घटित न हो जाये, या मुझे या मेरे अजीज को कोई बड़ी बीमारी न हो जाये, मैं मर न जाऊ, आदि आदि ..
जबकि उसको ये पता हैं, कि ये सब होना या न होना मेरे वश में नही हैं।
स्वामी रामसुख दासजी ने प्रसंग में अभय/ निर्भय होने के लिए बहुत ही प्रासंगिक बात बताई हैं-
' सर्पणाम न खलानाम च परद्रव्यापहारिणाम ।
अभिप्राया न सिध्यन्ति तेनेदम वर्तते जगत।।'
अर्थात सर्पों के, दुष्ट लोगो के, दूसरों का धन हरने वालों (डाकू लुटेरों ) के मनोरथ सिद्ध नही होते, तभी यह संसार चल रहा हैं।
तात्पर्य हैं कि, हमारा बुरा नही होने वाला हो तो कोई भी ताकत हमारा बुरा कर ही नही सकती। इसलिए निर्भय ओर निश्चिंत रहना चाहिए और अपनी तरफ से किसी का बुरा करने की बात तो दूर, किसी का बुरा सोचना भी नही चाहिए।
असल मुद्दे की बात ये हैं, कि डर का मूल बुराई हैं। किसी के बारे में हमारे मन मे बुराई का विचार ही हमारे लिए डर का मुख्य कारण हैं। सबका भला करने, सोचने वाला कभी किसी से नही डरता। यदि हम भी डर रहित जीवन चाहते हैं, तो बुराई का विचार जीवन मे से निकाल लीजिए, डर अपने आप भाग जाएगा।
ॐ शांति,
Fear is the natural function of human being. As is the joy, mourning, laughing, crying, according to natural circumstances, fear is also a natural behavior.
But our Sage Munis have easily told us the reason and refutation of this natural action.
As we all know, a small child is not afraid of anyone. They hold the fire in the fist. The violent animal also welcomes with joy, etc.
But the same child starts to feel scared, why?
Because fear is born inside it, nature has not given us the trait of birth fear.
The child is taught to be scared by his family. Do not do this, it will happen. Do not do that, it will be like that. And thus the child starts to scare.
is. Our sages said that the little child is the nature of God, so there is no fear in it. As we grow up, worldly understanding begins to dominate. Divine elements decrease and fear starts to develop in them. When he becomes too old, is completely trapped in the physical cycle of the world, the divine element becomes extinct almost often, then he starts to feel very scared.
They start to feel engrossed in such incidents, which are not of hers. As if an event happens with me or any of my friends, or there is no major disease to me or my azim, I will not die, etc.
While he knows this, it is not in my power to be or not to be all this.
Swami Ramsukh Dasji has told very relevant things to be non-fearless in the context-
' सर्पणाम न खलानाम च परद्रव्यापहारिणाम ।
अभिप्राया न सिध्यन्ति तेनेदम वर्तते जगत।।'
That is, the desire for the snakes, the evil people, the thieves (robber robbers) of others is not proven, only then the world is running.
It means that, if we are not going to be bad, then no power can do any harm to us. Therefore, fearlessness should be on the fearless and it is far from the point of doing bad to anyone on your side, nobody should think bad.
The point of the real issue is that the origin of fear is evil. The idea of evil in our mind about someone is the main reason for our fear. To do good to everyone, the thinker never fears anyone. If we also want a fearless life, then take the idea of evil out of life, fear will run away from us.
om shanti
These thoughts are the basis of our Indian civilization.
If you like, take life, life will be very simple and joyful.
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ये विचार हमारी भारतीय सभ्यता का आधार हैं।
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आपका - indianculture1
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Hello @indianculture1, thank you for sharing this creative work! We just stopped by to say that you've been upvoted by the @creativecrypto magazine. The Creative Crypto is all about art on the blockchain and learning from creatives like you. Looking forward to crossing paths again soon. Steem on!
NICE POST DEAR..
Thanks
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