मेरा नहीं हर शख्स का बयाँ है
मोहब्बत का अपना आसमा है ||
आसमा में हर किसी की उडी है पतंग
मेरी भी थी बस उसी में पतंग ||
जिसकी थी दोस्तों अपनी ही तरंग
उडती ही जाती थी लेकर उमंग ||
जब लड़ते है पेचे तो कटती है पतंग
मेरी भी लड़ी थी वही पर पतंग ||
उसी डोर से सटी थी मेरी भी उमंग
बेदर्दी से कट गयी मेरी वो पतंग ||
अब सब कहते है मुझको कटी सी पतंग
फिर भी डटी हु उसी आसमा में ||
मिल जाये मुझे बस वाही डोर अब तो
थामुंगी उसी को नहीं और अब तो||
क्यूंकि मेरा नहीं हर शख्स का बयाँ है
मोहब्बत का अपना होता आसमा है ||
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