Having lost my favorite leader this week, here's a small tribute to Atalji:
वो जो गया वो मेरा अटल,
मन न मानने पे अचल |
वो दिया जो बुझा, बाती भी है सुलग रही,
सबके मन को छु गया, बात वो उसने कही |
इस महफ़िल से आज एक पैमाना काम हो गया,
और फरिश्तों में एक नाम और शामिल हो गया |
है यहां जो उथल-पुथल, तो मन रहा वहाँ जश्न है,
शोर में भी यहां आज कितना सूनापन है |
सूरज भी जबसे निकला है, बड़ा उदासीन है,
और ढलती शाम भी कहाँ आज हसींन है |
रूदन इस ठहरी हवा में भी है,
आंसू तो बहता इस बयार में भी है|
मानो पूछ रही हो आसमान से, बोल, कहाँ है छुपाया वो मेरा रतन ,
वो जो गया वो मेरा अटल... वो जो गया यूं छोड़, आज मेरा अटल |
क्या लौटा पायेगा मुझको जो मैंने आज खोया,
न कोई फ़िक्र न कोई ख़ुशी है, शून्य में देखो वो कैसे है खोया |
इसी शून्य में आज धरती है जैसे, और अम्बर को वो कोस रही है जैसे,
नदिया की धारा और वो उफनता ज्वाला,
भी ढूंढता है उस पावन ह्रदय को और दोहराता है वो भी,
की लौटा वो मुझको, वो मेरा रतन |
आगोश में जो तेरी है सोया, मैंने है अपना सब खोया
जिसने दर्शाया था सत्य का मार्ग भी कल
कहाँ है बता वो मेरा वो अटल, वो जो गया वो मेरा अटल ||
Such a lovely poem it is!