सुरेश चिपलूनकर जी की कलम से.......
देश, जितना व्यापक शब्द है, उससे भी अधिक व्यापक है यह सवाल कि देश कौन बनाता है ? नेता, सरकारी कर्मचारी, शिक्षक, मजदूर, वरिष्ठ नागरिक, साधारण नागरिक.... आखिर कौन ? शायद ये सब मिलकर देश बनाते होंगे... लेकिन फ़िर भी एक और प्रश्न है कि इनमें से सर्वाधिक भागीदारी किसकी ? तब तत्काल दिमाग में विचार आता है कि इनमें से कोई नहीं, बल्कि वह समूह जिसका ऊपर जिक्र तक नहीं हुआ... जी हाँ... आप सही समझे.. बात हो रही है युवाओं की... देश बनाने की जिम्मेदारी सर्वाधिक युवाओं पर है और वे बनाते भी हैं, अच्छा या बुरा, यह तो वक्त की बात होती है । इसलिये जहाँ एक तरफ़ भारत के लिये खुशी की बात यह है कि हमारी जनसंख्या का पचास प्रतिशत से अधिक हिस्सा पच्चीस से चालीस वर्ष आयु वर्ग का है.. जिसे हम "युवा" कह सकते हैं, जो वर्ग सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, मानसिक सभी रूपों में सर्वाधिक सक्रिय रहता है, रहना चाहिये भी... क्योंकि यह तो उम्र का तकाजा है । वहीं दूसरी तरफ़ लगातार हिंसक, अशिष्ट, उच्छृंखल होते जा रहे... चौराहों पर खडे़ होकर फ़ब्तियाँ कसते... केतन पारिख और सलमान का आदर्श (?) मन में पाले तथाकथित युवाओं को देखकर मन वितृष्णा से भर उठता है । किसी भी देश को बनाने में सबसे महत्वपूर्ण इस समूह की आज भारत में जो हालत है वह कतई उत्साहजनक नहीं कही जा सकती और चूँकि संकेत ही उत्साहजनक नहीं हैं तो निष्कर्ष का अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है, लेकिन सभी बुराईयों को युवाओं पर थोप देना उचित नही है।
क्या कभी किसी ने युवाओं के हालात पर गौर करने की ज़हमत उठाई है ? क्या कभी उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश की है ? स्पष्ट तौर पर नहीं... आजकल के युवा ऐसे क्यों हैं ? क्यों यह युवा पीढी़ इतनी बेफ़िक्र और मनमानी करने वाली है । जाहिर है जब हम वर्तमान और भविष्य की बातें करते हैं तो हमें इतिहास की ओर भी देखना होगा । भूतकाल जैसा होगा, वर्तमान उसकी छाया मात्र है और भविष्य तो और भी खराब होगा । सुनने-पढ़ने में ये बातें भले ही निराशाजनक लगें, लेकिन ठंडे दिमाग से हम अपने आप से पूछें कि आज के युवा को पिछली पीढी़ ने 'विरासत' में क्या दिया है, कैसा समाज और संस्कार दिये हैं ? पिछली पीढी़ से यहाँ तात्पर्य है आजादी के बाद देश को बनाने (?) वाली पीढी़ । इन लगभग साठ वर्षों मे हमने क्या देखा है... तरीके से संगठित होता भ्रष्टाचार, अंधाधुंध साम्प्रदायिकता, चलने-फ़िरने में अक्षम लेकिन देश चलाने का दावा करने वाले नेता, घोर जातिवादी नेता और वातावरण, राजनीति का अपराधीकरण या कहें कि अपराधियों का राजनीतिकरण, नसबन्दी के नाम पर समझाने-बुझाने का नाटक और लड़के की चाहत में चार-पाँच-छः बच्चों की फ़ौज... अर्थात जो भी बुरा हो सकता था, वह सब पिछली पीढी कर चुकी । इसका अर्थ यह भी नहीं कि उस पीढी ने सब बुरा ही बुरा किया, लेकिन जब हम पीछे मुडकर देखते हैं तो पाते हैं कि कमियाँ, अच्छाईयों पर सरासर हावी हैं ।
अब ऐसा समाज विरासत में युवाओं को मिला है, तो उसके आदर्श भी वैसे ही होंगे । कल्पना करके भी सिहरन होती है कि यदि राजीव गाँधी कुछ समय के लिये (कुछ समय इसलिये क्योंकि पाँच वर्ष किसी देश की आयु में बहुत कम वक्फ़ा होता है) इस देश के प्रधानमन्त्री नहीं बने होते, तो हम आज भी बैलगाडी़-लालटेन (इसे प्रतीकात्मक रूप में लें) के युग में जी रहे होते । देश के उस एकमात्र युवा प्रधानमन्त्री ने देश की सोच में जिस प्रकार का जोश और उत्साह पैदा किया, उसी का नतीजा है कि आज हम कम्प्यूटर और सूचना तन्त्र के युग में जी रहे हैं (जो वामपंथी आज "सेज" बनाने के लिये लोगों को मार रहे हैं उस वक्त उन्होंने राजीव गाँधी की हँसी उडाई थी और बेरोजगारी-बेरोजगारी का हौवा दिखाकर विरोध किया था) । "दिल्ली से चलने वाला एक रुपया नीचे आते-आते पन्द्रह पैसे रह जाता है" यह वाक्य उसी पिछ्ली पीढी को उलाहना था, जिसकी जिम्मेदारी आजादी के बाद देश को बनाने की थी, और दुर्भाग्य से कहना पड़ता है कि, उसमें वह असफ़ल रही । यह तो सभी जानते हैं कि किसी को उपदेश देने से पहले अपनी तरफ़ स्वमेव उठने वाली चार अंगुलियों को भी देखना चाहिये, युवाओं को सबक और नसीहत देने वालों ने उनके सामने क्या आदर्श पेश किया है ? और जब आदर्श पेश ही नहीं किया तो उन्हें "आज के युवा भटक गये हैं" कहने का भी हक नहीं है । परिवार नियोजन और जनसंख्या को अनियंत्रित करने वाली पीढी़ बेरोजगारों को देखकर चिन्तित हो रही है, पर अब देर हो चुकी । भ्रष्टाचार को एक "सिस्टम" बना देने वाली पीढी युवाओं को ईमानदार रहने की नसीहत देती है । देश ऐसे नहीं बनता... अब तो क्रांतिकारी कदम उठाने का समय आ गया है... रोग इतना बढ चुका है कि कोई बडी "सर्जरी" किये बिना ठीक होने वाला नहीं है । विदेश जाते सॉफ़्टवेयर या आईआईटी इंजीनियरों तथा आईआईएम के मैनेजरों को देखकर आत्ममुग्ध मत होईये... उनमें से अधिकतर तभी वापस आयेंगे जब "वहाँ" उनपर कोई मुसीबत आयेगी, या यहाँ "माल" कमाने की जुगाड़ लग जाये।
हमें ध्यान देना होगा देश में, कस्बे में, गाँव में रहने वाले युवा पर, वही असली देश बनायेंगे, लेकिन हम उन्हें बेरोजगारी भत्ता दे रहे हैं, आश्वासन दे रहे हैं, राजनैतिक रैलियाँ दे रहे हैं, अबू सलेम, सलमान खान और संजय दत्त को हीरो की तरह पेश कर रहे हैं, पान-गुटखे दे रहे हैं, मर्डर-हवस दे रहे हैं, "कैसे भी पैसा बनाओ" की सीख दे रहे हैं, कानून से ऊपर कैसे उठा जाता है, "भाई" कैसे बना जाता है बता रहे हैं....आज के ताजे-ताजे बने युवा को भी "म" से मोटरसायकल, "म" से मोबाईल और "म" से महिला चाहिये होती है, सिर्फ़ "म" से मेहनत के नाम पर वह जी चुराता है...अब बुर्जुआ नेताओं से दिली अपील है कि भगवान के लिये इस देश को बख्श दें, साठ पार होते ही राजनीति से रिटायरमेंट ले लीजिये, उपदेश देना बन्द कीजिये, कोई आदर्श पेश कीजिये... आप तो पूरा मौका मिलने के बावजूद देश को अच्छा नहीं बना सके... अब आगे देश को चलाने का मौका युवाओं को दीजिये... देश तो युवा ही बनाते हैं और बनायेंगे भी... बशर्ते कि सही वातावरण मिले, प्रोत्साहन मिले... और "म" से मटियामेट करने वाले ("म" से एक अप्रकाशनीय, असंसदीय शब्द) नेता ना हों.... आमीन...
The country is even more comprehensive than the broad word, the question is, who makes the country? Leader, government employee, teacher, laborer, senior citizen, ordinary citizen .... who is the last? Maybe all of them will make the country together ... but there is another question that the most part of which is the partnership? Then there is an idea in the immediate mind that none of these, but the group which has not been mentioned above ... Yes ... you understand right .. talking about youth ... The responsibility of making the country is most youth And they also make them, good or bad, it's a matter of time. So, the happiness of India on one side is that more than fifty percent of our population is from twenty-five to forty years of age .. which we can call "youth", which are classified as social, economic, physical, mental The most active in the forms, should remain ... because this is the reason of age. On the other hand, on the other hand, being violent, rude, disorganized ... on the crossroads, the mobs ... The ideals of Ketan Parikh and Salman (?) Are filled with delirium, seeing the so-called youth. The most important of this country in making any country is that the situation in India today can not be encouraged and since the signs are not encouraging, the conclusion of the conclusion can be imposed, but imposing all the evils on the youth. Is not justified .
Has anyone ever raised a question about the circumstances of the youth? Have you ever tried to understand their feelings? Clearly ... why are the young people nowadays? Why this young generation is so scandalous and arbitrary. Clearly, when we talk about present and future, we have to look towards history. Like the past, the present is just a shadow and the future will be even worse. Though these things may be disappointing in hearing, but with a cold mind, we ask ourselves, what have the young generation given in 'heritage', what kind of society and rites have you given to today's youth? From the previous generation, here is the meaning of creating a nation (?) Generation after independence. What have we seen in these nearly sixty years ... Corruption, indiscriminate communalism, unable to walk, but the leaders who claim to run the country, the racist leader and environment, the criminalization of politics or the politicization of criminals In the name of the nervous system, the drama of quenching and the boy's wished four or five-six men's army ... that which could have been worse, all of them were the last generation. Good It does not mean that the generation has done all the bad things, but when we look back, we find that the weaknesses are dominating on the good.
Now if such a society has got the youth in heritage, then its ideal will be the same. Imagine that even if Rajiv Gandhi was for some time (for some time, because for five years there is very little waqfa in the age of a country), if not the Prime Minister of this country, we still have bullock-lantern (symbolic Take the form)). The only young Prime Minister of the country, the kind of zeal and enthusiasm created in the country's thinking is the result of that today we are living in the era of computer and information technology (which left the people to create "SEZ" today At that time, he laughs at Rajiv Gandhi and opposed unemployment-showing unemployment). "One rupee from Delhi goes down fifteen paise", this sentence was to call the last generation, whose responsibility was to make the country after independence, and unfortunately it has to say that it failed. It is known to everyone that before giving a precept to any person, you should also see the four fingers rising on your side, what is the role and ideology of youth presented to them in front of them? And when he did not present the ideal, he has no right to say, "Today's youth have gone astray." Concerned over the family planning and unemployed population, the population is getting anxious, but it is late now. The generation giving corruption to a "system" gives the youth the urge to be honest. The country does not become such ... Now it's time to take revolutionary steps ... The disease has increased so much that it is not going to be okay without any major "surgery". Do not feel overwhelmed by seeing foreign software or IIT engineers and IIM managers ... Most of them will come back only when "there" will be a problem, or there will be a juga for earning "goods".
We will have to pay attention to the country, in the town, on the youth living in the village, they will make the same real country, but we are giving them unemployment allowance, giving assurances, giving political rallies, Abu Salem, Salman Khan and Sanjay Dutt Are acting as heroes, giving pan-gutkheyas, giving deaths, learning how to "make money", how it raises above the law, how "brother" is made Are telling ... come The freshly-favored young man also wants a woman from "M" to motorcycle, "M" to mobile and "M", only "M" steals his life after the hard work ... now bourgeois leaders An appeal is to save this country for God, as soon as sixty years pass, take retirement from politics, stop preaching, offer an ideal ... you can not make the country good despite the full opportunity ... Now the chance to run the country ahead of the youth Please ... ... make the country young and will also be made ... provided that the right atmosphere is found, encourages ... and not the leader of the "M" (an inaccessible, unpredictable word from "M") leader .... Amen...
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