थियोसोफिकल सोसायटी की पूरी जानकारी | Theosophical Society
Theosophical Society in Hindi – सभी धर्मों के अध्ययन तथा सत्य की खोज के लिए रूसी महिला मैडम वेलवेस्टकी तथा अमेरिका निवासी कर्नल अल्काट ने सन् 1875 ई. में न्यूयार्क ( अमेरिका ) में थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना की. यह सभी धर्मों के सौहार्द्र और बन्धुत्व की भावना का समर्थक तथा धार्मिक एवं वैचारिक संकीर्णता का कट्टर विरोधी हैं. इनके अनुसार सभी धर्म ईश्वर तक पहुँचने के भिन्न-भिन्न मार्ग हैं. इसके सिद्धांतों से प्रभावित होकर स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इनके दोनों संस्थापको को भारत में आने का निमन्त्रण दिया. उन्होंने सन् 1879 ई. में यहाँ आकर तत्कालीन मद्रास प्रांत के अडायर नामक स्थान पर सन् 1882 ई. में इसकी प्रथम भारतीय शाखा की स्थापना की. उन्होंने इस देश का भ्रमण तथा हिन्दू धर्म का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला कि हिन्दू धर्म सर्वश्रेष्ठ धर्म तथा हिन्दू संस्कृति सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है. उन्होंने इसकी श्रेष्ठता की प्रतिष्ठापना के साथ-साथ इनका पूरे देश में प्रचार किया. इसका उन भारतीयों पर गहरा प्रभाव पड़ा जो अंग्रेजी शिक्षा और पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हो हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति से विमुख हो रहे थे. हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति के प्रति लगाव पैदा कर थियोसोफिकल सोसायटी ने भी भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी.
सन् 1893 ई. में श्रीमती एनी बेसेंट ने इंग्लैण्ड से भारत आकर अपने को थियोसोफिकल सोसायटी से सम्बद्ध कर इसके सिद्धांतों एवं लक्ष्यों के प्रसार और प्रचार में महत्वपूर्ण योगदान किया. वह भी हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति से अत्यधिक प्रभावित थी तथा वह व्यवहारतः हिन्दू हो गयी थी. उन्होंने सामजिक सुधार, राजनीति तथा शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान किया. भारत की स्वतंत्रता के प्रति उनकी गहरी रुचि थी जिसके कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अपने को सम्बद्ध कर उन्होंने तिलक जी के साथ होमरूल आन्दोलन चलाया और सन् 1916 ई. में यह कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं.
थियोसोफिकल सोसायटी के सिद्धांत | Principles of Theosophical Society
इसके धार्मिक और सामजिक सिद्धांत इस प्रकार हैं –
ईश्वर एक तथा अनंत , असीम, सर्वव्यापी और अज्ञेय है. उसकी पूजा का कोई प्रश्न ही नहीं उठता हैं.
वह हमारा उद्गम एवं अंत हैं. सप्तऋषि उसके मंत्री तथा देवता उसके नीचे हैं.
सारभूत रूप से सभी धर्म सत्य हैं परन्तु हिन्दू धर्म एवं बौद्ध धर्म पुरातन ज्ञान के भण्डार हैं.
सभी मनुष्य समान हैं एवं जात-पांत की भावना व्यर्थ है. सभी में भातृत्व की भावना होनी चाहिए.
मनुष्य को विवेक पर आधारित चरित्र निर्माण को प्रमुखता देनी चाहिए तथा बाल-विवाह और विधवा-विवाह निषेध जैसी रूढ़िवादी प्रथाओं का अंत कर देना चाहिए.
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