सैंडिलों की खट -खट लगती घोड़े की टाप वहाँ
हाथ में चूड़ी ,माथे पे बिंदिया ,सिर पर आँचल ,
नयनों में लाज का काजल ,पाँवों में बजती पायल
छोड़ती भारतीय संस्कृति की जीती जागती छाप यहाँ
मिलती है हर किसी को यहाँ चैन की ठंडी सी छांव
आपके शहर से तो कहीं अच्छा है मेरा गाँव |
यहाँ पुराना बरगद का पेड़
वह खेत की मेढ़ वह चिड़ियों का चहकना
वह फूलों का महकना वहां शेष रह गया केवल
धुंवा ही धुआं
सूरज अब जमीं के पास आ गया
भौतिकता का नशा हर व्यक्ति पर छा गया
आदमी को आदमी से न मिलने की है फुरसत
भाईचारा और इंसानियत यहां कर रहे रुखसत
आदमी सुनने को तरस गया कोए की कांव कांव
आपके शहर से कहीं अच्छा है मेरा गाँव......
लम्बी -चौड़ी सड़कें हैं शहर में तो क्या हुआ
चलने में मिलती पगडण्डी जैसी आजादी कहाँ
गूंजती हैं वहाँ वाहनो के चीखने की आवाज़
कोयल की मीठी कूक सुनने को मिलती है यहाँ
मिल जाती पहले ही अतिथियों के आने की सूचना
छप्पर पर बैठा कौआ जब करता काँव -काँव
आपके शहर से तो कहीं अच्छा है मेरा गाँव |
यहां फटे कपड़ो में भी तन को ढापा जाता है
वहां खुले बदन पे टैटू छापा जाता है
वहां कोठी है बंगले है और कार है
यहाँ परिवार है और संस्कार है
वहां चीखो की आवाजे दीवारों से टकराती है
यहाँ दूसरो की सिसकिया भी सुनी जाती है... ...
यहाँ मकान चाहे कच्चे हैं लेकिन रिश्ते सारे सच्चे है
वहां AC में भी वह सुकून नहीं
जो देती है यहाँ खपरेल की छाँव,
आपके शहर से कहीं अच्छा है मेरा गाँव......