"अवैध" मानसिकता का कोई उपाय नहीं।
कितनो को पकडे ?
कितनी बार पकडे ?
कहा कहा से पकडे ?
और पकड़ के बी क्या ?
न्यायतंत्र पता हैं ना ?
इसी लिए तो निःसंकोच सब हो रहा।
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"अवैध" मानसिकता का कोई उपाय नहीं।
कितनो को पकडे ?
कितनी बार पकडे ?
कहा कहा से पकडे ?
और पकड़ के बी क्या ?
न्यायतंत्र पता हैं ना ?
इसी लिए तो निःसंकोच सब हो रहा।