पहले की तीन पोस्टों “जीवन और आचरण” के आगे और अंतिम अध्धाय शुरू करते है ----
मनुष्य ने आज तक जितनी भी उन्नति की है, वह विचार के आधार पर ही सम्भव हुई है । जीवन-व्यवहार के कुछ नियम होते हैं, उन्हें सदाचार के नियम कहा जाए अथवा जीवन –व्यवहार के नियम, किन्तु इतना सुनिश्चित है कि उन नियमों के पालन द्वारा ही मनुष्य उन्नति कर सकता है । सदाचार के द्वारा ही कार्य तथा उद्देश्य में समायोग स्थापित होता है । वैज्ञानिक द्रष्टि से जिस प्रकार आचार का लक्ष्य तथा उद्देश्य स्पष्ट हो तथा जिस प्रकार के आचरण द्वारा उद्देश्य प्राप्ति की सबसे अधिक सम्भावना हो, वही सदाचार है । एक सच्चरित्र मनुष्य का समस्त जीवन नैयमिक रूप से संचालित होता है । उसके किसी काम में उच्छ्रंखलता नहीं होती । उसके आचरण में नियमबद्धता तथा पूर्वापर का सम्बन्ध बना रहता है । उदाहरण के लिए मान लीजिए कि एक ऐसा व्यक्ति है जो सदा सत्य के पथ पर नहीं चलता । अब यदि वह कभी किसी अन्य आदमी से कुछ रूपये उधार लेता है, तो हम नहीं कह सकते हैं कि वह समय पर उन रुपयों को लौटाएगा अथवा नहीं । यदि उसने किसी समय विशेष पर या स्थान विशेष पर उपस्थित होने का वायदा किया है, तो हम नहीं कह सकते कि वह अपने वायदे को पूरा करेगा या नहीं । हम यह भी नहीं कह सकते कि किसी अवसर पर वह सत्य बोलेगा या झूठ ।
किन्तु इसके विपरीत एक सच्चरित्र व्यक्ति के सभी काम नैयमिक होते है । नीतियुक्त होते हैं । उसके कार्यों में पूर्वापर सम्बन्ध होता है । अत: अवस्था विशेष में हम उसके कामों को अग्रिम बतला सकते हैं । क्योंकि एक पूर्णतया सदाचारी सच्चरित्र व्यक्ति के कारोबार में गणित विद्या के अंकों जैसी यथार्थता विद्यमान रहती है । वह अपने वायदों को सम्यक् रूप से पूरा करता है ।
यदि उसने किसी के साथ कोई समझोता किया है तो वह उसे अक्षर-अक्षर पूरा करता है । यदि उसने किसी को कोई वचन दिया है तो वह उसका रत्ती-रत्ती पालन करता है । तथा यदि उसने कारोबार के सम्बन्ध में किसी प्रकार का कौल-करार किया है तो वह उसे पूर्णरूपेण निभाता है । वह जब कभी बोलता है तो सत्य ही बोलता है । यदि उसने विवाह किया है तो वह पिता तथा पति के सभी कर्त्तव्यों का पालन करता है । संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि एक सदाचारी व्यक्ति के सभी कार्य किसी व्यूह के मध्य सिपाहियों के सदृश कठिन अनुशासन के अन्दर रहते है । असंयमित या विचारहीन आचरण का नाम ही दुराचरण है । ऐसे दुराचरण से दूर रहकर हमें सदाचरण के मार्ग पर चलना चाहिए ।
प्रसंग आ निकला है तो हम आप यह भी जान ले कि विश्व की महान संस्कृतियों के पतन का मूल कारण क्या रहा है ।
वास्तविकता यह है कि सदाचार ही वह आधार है जिस पर मनुष्य का तथा समाज का जीवन स्थिर और स्थित रहता है । जैसे ही सदाचार का स्थान दुराचार ले लेता है, मनुष्य ही नहीं, पुरे समाज तथा उसकी संस्कृति की धुरी टूट जाती है । सदाचार ही एकमात्र ऐसी आकर्षण शक्ति है जो समाज को स्थिर और कायम रख पाती है । प्राण निकल जाने पर जिस प्रकार अणुओं और परमाणुओं से बना हुआ शरीर बिखर-छितर जाता है, ठीक उसी प्रकार सदाचार-विहीन समाज भी शीघ्र ही विनष्ट हो जाता है ।
प्राचीन मिस्र (इजिप्ट) खुल्द, बेबीलोन, असीरिया और फारस का विनाश इसीलिए हुआ कि वे जीने के योग्य नहीं रहे थे । उनके सामाजिक जीवन में से सदाचार विलीन हो गया था ।
संसार को विजित करने वाली रोमन सभ्यता तथा रोम की क्या दशा हुई । एक मामूली-सी जंगली जाति से वह परास्त व ध्वस्त हो गया । इसका कारण क्या था ? सामाजिक दुराचारी रोमन तथा ऐसी ही अन्य सभ्यताओं में से जब विवाह प्रथा कमजोर होती-होती समाप्त हो गई तथा स्थान वेश्या संस्कृति ने ले लिया, तब विश्व-विजयी सभ्यताओं का हश्र और हो भी क्या सकता था – अध:पतन के अतिरिक्त ?
वही हुआ । प्राचीन ग्रीस, रोम तथा अन्य देशों में खुलेआम व्यभिचार होने लगा था, तब इस दुराचार का दुष्परिणाम उन जातियों को कैसे नहीं भोगना पड़ता ? उन जातियों के सामाजिक जीवन में से पवित्र विवाह-प्रथा का जितना-जितना हास होता गया, उतने ही वे उच्छ्रंखल तथा दुराचारी होते गए और एक दिन ऐसा आया जबकि वे लोग, वे जातियां, वे संस्कृतियां – इस धराधाम से अद्रश्य हो गई, अध:पतन के ऐसे गर्त में जा गिरी कि आज उनका कुछ पता-ठिकाना भी नहीं ।
इसके विपरीत हम अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति की ओर यदि दृष्टिपात करें तो पाते हैं कि हमारी संस्कृति आज भी जीवित है । आज भी यह संसार की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है तथा आज भी सारा विश्व मार्ग दर्शन के लिए हमारी संस्कृति की ओर आँखें उठाकर देख रहा है ।
इसका एकमात्र कारण है हमारी संस्कृति का मूलतत्व सदाचार ।
भारतीय संस्कृति के सारे नियम, सभी परिपाटियाँ, समस्त व्यवस्थाएं मूलतः सदाचार के आधार पर स्थापित किए गए हैं । यही कारण है कि आंधी और तूफान आते हैं, झंझावत उठते हैं, उनचासों पवन गर्जना करते हैं, हमें झकझोरते हैं, हमें उखाड़ फेंकना चाहते हैं- किन्तु हम सदाचार की उस दृढ़ आधारशिला पर खड़े है कि हमारा पतन हो ही नहीं पाता ।
अस्तु, आज इस तथ्य को भलीभांति ह्रदयंगम कर लीजिए कि सदाचार हमारे जीवन का आधार है । इतने विशाल समाज में यदा-कदा, यत्र-तत्र एक-दो व्यक्ति तो ऐसे निकल ही आते हैं जो मार्ग-भ्रष्ट हो जाते है । किन्तु हमारा मूल कर्तव्य है कि हम ऐसे लोगों को सन्मार्ग दिखाएं तथा प्रेमपूर्वक उन्हें फिर से शुद्ध आचरण की ओर ले जाएं ।
Your words remind me of Taarak Mehta from TMKOC :D Bheede should write this on society white board :)
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एक अच्छा आदमी होना ही सदाचार है : सबसे प्यार से बात करना, मित्रता रखना,विनम्र रहना इत्यादि।@mehta ji, आपने आज सदाचार की बात कही ।
यदि हमारा आचरण अच्छा है तो हमें हर जगह प्रतिष्ठा और सम्मान मिलता है आचरण विहीन व्यक्ति की ना तो समाज इज्जत करता है और ना ही उसके घर परिवार वाले करते हैं इसीलिए हमें अपने आचरण को कभी नहीं छोड़ना चाहिए
आज मनुष्य सदाचार के आचरण से कोसो दूर होता जा रहा है क्यों की उसके अंदर दुराचार ने अपना निवास कर लिया इसका मुख्य कारण यह रहा है की आज जिस समाज में हम सब रहते है उसमे ईर्ष्या, द्वेश की भावना, झूट बोलना, मनुष्य का मनुष्य द्वारा कतल होना ऐसी कई घटनाये हो रही है जिससे हमारी संस्कृति का भी पतन होता जा रहा है
@mehta बिलकुल सही बात है, सदाचारी मनुस्य पे लोग हमेशा भरोसा करते है और उस पर विस्वास जताते है की वह काम जरूर पूरा करेगा |
jai jinendra saa
यही हम स्वयं सदाचारी बने रहेंगे तो हममें इतनी शक्ति भी बनी रहेगी कि हम स्वकल्याण के साथ-साथ परकल्याण भी कर सकें – भूले हुओं को मार्गे दिखा सकें ।
बहुत उच्च सोच जो सम्पूर्ण प्राणी मात्र का कल्याण कर सकती हैं। बहुत साधुवाद।
व्यक्ति का चरित्र और उसका आचरण बहुत महत्वपूर्ण है। इसी के आधार पर उसको समाज मे सम्मान मिलता है। क्या कहते हो @mehta जी।
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Apki post Kaif achi hai @mehta
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अगर हमें पता है कि हमारे शिष्टाचार - भाषा, व्यवहार और कार्य - हमारे मूल्यों और सिद्धांतों के मुकाबले मापा जाता है, तो हम दर्शन को आसानी से जोड़ सकते हैं, नेतृत्व एक तरीका है कि कैसे होना है, न कि कैसे करना है।@mehta
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@mrhta g, आपकी Post पड़ने के बाद इतनी आपके प्रति दुआए और अहो -भाव जागते की क्या बताऊ दिल से धन्यवाद् ज्ञान फैलाने के लिए !
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Such a difficult @language ...... You are from Asia, India >>>:):) @mehta
yes, I am from India. And you are from?
Yeah! i search your language on google:) that's why i know you language.
USA
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Actually Be-Honestly i don't understand completely but it's very Interesting.
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sadachar khtm hota ja raha hai hamre smaj me aur durachar badhta ja raha hai. kalyug ka asar dikhne laga hai.
great post! thanks for sharing
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व्यक्ति के जीवन में आचरण का विशेष महत्व है। श्रेष्ठ आचरण से व्यक्ति का बहुमुखी विकास होता है। अच्छा इंसान बनने के साथ-साथ वह भगवद् प्राप्ति की तरफ अग्रसर हो सकता है। मानव योनि में जन्म मिलना भी तभी संभव होता है जब परमात्मा की अनंत कृपा होती है। इसे व्यर्थ नहीं गंवाएं। खाली हाथ मनुष्य इस संसार में आता है और रोता बिलखता, खाली हाथ ही चला भी जाता है। उसका सारा ताना-बाना यहीं रखा का रखा रह जाता है।
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