असत्य पैदा करता है अविश्वास (भाग #३) | False Unbelief (Part # 3)
दुनिया के सारे लोग अर्थशास्त्री नहीं हैं, किन्तु अर्थ के प्रभाव से प्रभावित जरुर हैं । अर्थशास्त्र और अध्यात्म का क्या सम्बन्ध ? दोनों एक दुसरे के विरोधी और विपरीत है । अर्थशास्त्र की यह अवधारणा है कि इच्छा शक्ति बढ़ाओ, उत्पादन बढ़ाओ और अध्यात्म संयम की बात कहता है । उपभोग में संयमता बरतो । फिर अध्यात्म और अर्थशास्त्र को आपस में कैसे जोड़ा जा सकता है ?
अर्थ के सम्बन्ध में प्राचीन अवधारणा और अर्थशास्त्र के सिद्धान्त किसी भी तरह से मेल नहीं खाते । सनातन धर्म, वैष्णव धर्म, जैन, बौद्ध आदि सभी धर्मों की यह मान्यता रही है कि इच्छा का संयम करो, उसे कम करो, उद्दाम इच्छा और लालसा जीवन के लिए ठीक नहीं है । यह शिक्षा प्राय: सभी धर्म देते है ।
दूसरी ओर अर्थशास्त्र कहता है कि प्रगति करनी है तो इच्छा को बढ़ाओ । अगर अर्थ की प्राप्ति करनी है तो नैतिकता को आड़े मत आने दो । यह विचार मन को जितना लुभाता है, उतना अध्यात्म का विचार नहीं लुभाता । इसका कारण है कि अध्यात्म के सिद्धान्त का पालन करने में असुविधा है और अर्थशास्त्र के सिद्धान्त को मानने में सुविधा और सुख है । सुख की प्राप्ति का मानव शुरू से ही आकांशी रहा है, इसलिए उसने अध्यात्म की बात को गौण कर विशुद्ध आर्थिक दृष्टि से चिंतन शुरू किया । उसकी परिणति है आज की स्थिति और परिस्थिति । आदमी का चिंतन पूरी तरह से व्यावसायिक हो गया है । अब धर्म को भी वह लाभ-हानि और तात्कालिक फायदे और नुकसान की दृष्टि से देखता है । अगले जन्म में क्या होगा, यह दूर की बात है, अभी जो सामने है, चिन्ता उसकी करो, यह आदमी की दृष्टि है । धार्मिक क्रियाकलाप भी अब व्यवसाय का रूप ले रहे हैं । सात दिन के प्रवचन और धर्मकथा का पूरा कोन्ट्रेक्ट होता है । इतना चढ़ावा आएगा, इतनी महात्माजी की फीस या पारिश्रमिक और शेष व्यवस्था कार्य में खर्च होगा । पूरी योजना और पूरा हिसाब-किताब । यह जीवन में बहुत भीतर तक अर्थशास्त्र के प्रवेश कर जाने का परिणाम है ।
धन के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है । उसके बिना जीवन की प्रवृति कम से कम आज के युग में तो नहीं चल सकती । जितना आकर्षण उपभोग में है, उतना वर्जना में नहीं है । पहले संतोष का पाठ पढ़ाया जाता था, इच्छा नियंत्रण की शिक्षा की जाती थी तो उसके साथ सत्य की बात फिट बैठ जाती थी । किन्तु आज सारा वातावरण बदल गया । दृश्य बदल गया । झूठ के भी दो प्रकार है – माया और मृषा । एक झूठ और एक कपटपूर्वक झूठ । दोनों में फर्क है । झूठ तो साधारण हंसी मजाक में भी आदमी बोल देता है । योजनापूर्वक, सोच-समझकर, पूरी तैयारी के साथ दूसरों को ठगने के लिए, धोखा देने के लिए, दूसरों को फसाने के लिए कपटपूर्वक झूठ बोलता है । बहुत अन्तर है दोनों में । विनोद और परिहास में बोला गया झूठ अस्थायी होता है, थोड़ी देर बाद स्वत: जाहिर हो जाता है कि झूठ बोला गया । कभी-कभी आदमी स्वयं ही कह देता है – भाई माफ़ करना, मैंने मजाक किया था । लेकिन कपटपूर्वक बोला गया झूठ स्थायी होता है । यह बहुत हानि पहुँचाने वाला और बर्बाद कर देने वाला झूठ होता है । साझे में व्यापार किया । मन में कपट आया । वर्षों तक पार्टनर को छलावा देते रहे । भीतर अपना शिकंजा कसते रहे और एक दिन सारा व्यापार हस्तगत कर साझीदार को बेदखल कर दिया । यह मायायुक्त झूठ आज बहुत चल रहा है । दुसरो को ठगने के लिए तरह-तरह के नुस्खे काम में लिए जाते हैं ।
एक बार कोई व्यापारी किसी काम से दिल्ली से जयपुर जा रहा था । बीच में बस रुकी तो एक आदमी आया । उसने कुछ बाते व्यापारी से की और प्रभाव में लिया और फिर बिस्कुट निकाल कर कहा – “लीजिए, आप भी खाइये, क्या पता कब मुलाकात हो ।” व्यापारी ने सौजन्यतावश बिस्कुट खा लिया । खाते ही उन्हें नींद आने लगी और थोड़ी देर बाद वे गहरी नींद में चले गए । जयपुर पहुँचने पर जब होश आया तो सूटकेस सहित उनका सारा सामान गायब था ।
ठगाई और माया कपट का व्यापार इतने धड़ल्ले से चल रहा है कि पुरानी मान्यताएं धूमिल पड़ गई हैं । आज की स्थिति को देखते हुए सोचना पड़ता है कि प्राचीन विचारकों और आचार्यों ने यह कैसे लिख दिया कि असत्य अविश्वास का कारण है या सत्य विश्वास का कारण है । असत्य भी आज इस तरह से बोला जाता है कि विश्वास पैदा कर देता है । न्यायालयों में कुछ लोग गवाही देने का धंधा करते हैं । इस काम की वे एक निश्चित फीस लेते हैं । कोर्ट में गवाही या साक्षी बहुत मायने रखती है । पूरा केस ही गवाही पर अवलंबित होता है ।
एक आदमी, जिसकी उस दिन कोर्ट में तारीख थी, वह गवाही की व्यवस्था नहीं कर सका था । परेशान हालत में उसे देखकर एक पेशेवर गवाह उसके पास आया और बोला – “बहुत परेशान लग रहे हो, क्या बात है ?”
उसने कहा – “परेशानी की मत पूछो । आज मेरे केस में गवाही है । जिसे मैं गवाह के रूप में लाया था, उसे विपक्षी ने प्रलोभन देकर कहीं छिपा दिया । अब क्या करूँ ?”
गवाह ने कहा – “कोई बात नहीं, गवाही मैं दे दूंगा । तुम केस से सम्बंधित मुख्य बातें मुझे बता दो ।”
वह गवाह को मुद्दे समझा ही रहा था कि पुकार हो गई । वकील के साथ वादी और गवाह न्यायालय में जज के सामने उपस्थित हुए ।
न्यायाधीश की आज्ञा लेकर विपक्षी वकील ने पूछा – “अच्छा, तो आप बताइए की उसका रंग कैसा था ?”
दूसरा कोई होता तो पशोपेश में पड़ जाता, क्योंकि मुद्दा ठीक से समझ ही नहीं पाया था, किन्तु पेशेवर गवाह के चेहरे पर शिकन भी नहीं आई । वह बोला – “रंग की क्या पूछते हैं हुजूर, इतना बढ़िया कि कह नहीं सकता । बहुत ही साफ और चमकदार ।”
“और कद ?”
यह गवाह को चकरा देने वाला प्रश्न था । गवाह तो मुद्दा ही नहीं पूछ पाया था कि कोर्ट में पेश होना पड़ गया । अब क्या उत्तर दे ? किसके कद के बारे में पूछा जा रहा है, उसे पता नहीं था । किन्तु तुरंत ही संभल गया और अपने दाहिने हाथ को कंधे की ऊंचाई तक लेकर कहा – “कद तो लगभग इतना.....”
उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि विपक्षी वकील बोल पड़ा – “देखिये, माई लार्ड कहीं मुर्गा इतना बड़ा होता है ?” मुर्गे की चोरी का केस था, अब जाकर गवाह को पता चला । तुरंत ही वह संभला और बोला – “हुजूर, वकील साहब तो बीच में हो बोल पड़े । बाएं हाथ को थोड़ा दाहिने हाथ के नीचे तो आने दीजिए” और इतना कहकर उस पेशेवर गवाह ने उठे दाहिने हाथ की हथेली के एक फुट नीचे अपने बायें हाथ की हथेली कर दी । साबित हो गया कि मुर्गे का कद एक फुट का था । उसकी गवाही परफेक्ट मानी गई, जबकि वह सरासर झूठा और फर्जी गवाह था ।
पिछली पोस्टों का जुड़ाव है -
- https://steemit.com/life/@mehta/or-false-unbelief-part-1
- https://steemit.com/life/@mehta/or-false-unbelief-part-2
The English translation of this post with the help of Google language tool as below:
Not all people in the world are economists, but they are definitely influenced by the influence of meaning. What is the relation between economics and spirituality? Both are opposites and opposites of each other. This concept of economics is that the will increase the will, increase production, and speak of spirituality restraint. Have patience in consumption How can spirituality and economics be combined?
In relation to meaning, the concept of ancient concepts and economics does not match in any way. All religions like Sanatan Dharma, Vaishnav Dharma, Jain, Buddhism etc. have been recognized that restrain their desires, reduce them, boisterous desires and longings are not right for life. This education often gives all religions.
On the other hand, economics says that progress is to increase the desire. If you want to achieve meaning then do not let the morality prevail. The thought of the mind as much as it attracts, does not attract the thought of spirituality. The reason for this is that there is discrepancy in adhering to the principles of spirituality and there is convenience and happiness in accepting the principles of economics. Human beings have been attracted to the beginning from the beginning, so they started thinking purely in terms of spirituality and started thinking purely financially. The result is the situation and situation of today. Man's thinking has become completely business. Now he also sees religion as a result of profit-loss and immediate advantages and disadvantages. What will happen in the next life, it is a distant thing, what is in front of it, worry him, this is a man's vision. Religious activities are also taking the form of business. The seven-day discourse and the whole story of Dharmaktha are contracted. There will be so much offering, so that Mahatmaji's fees or remuneration and the rest of the system will be spent in the work. Complete planning and complete account book. This is the result of entering the economics of much inner life in life.
Attraction towards money is natural. Without that, the tendency of life can not run at least in today's era. The more the attraction is in consumption, it is not in the taboos. Earlier, the lesson of satisfaction was taught, the education of desire control was done, and the truth was fits with it. But today the whole atmosphere has changed. The scene changed. There are also two types of lies - Maya and Marisha. A lie and a falsely lie. There is a difference between the two. A man speaks a lie in a general laughing joke. Plagued lies, deceitfully fraudulent, deceitful, deceitful, deceitful, deceitful, with all preparations, planned and thoughtfully. There is a lot of difference in both. The lie spoken in the joke and gossip is temporary, after a while it is automatically revealed that a lie was made. Sometimes the man himself says - Sorry brother, I joked. But deceived lies are permanent. It is a very harmful and destructive lie. Do business in shared There was deception in mind. For years, continued to cheat on the partner. Keeping the screws inside and grabbing the entire business one day, the partner was ousted. This Mayan lie is going on very much today. Various types of prescriptions are used to cheat others.
Once a trader was going to Delhi from Jaipur for some work. The bus stopped in the middle, then a man came. He took some words from the businessman and took it in his influence and then took out the biscuit and said, "Take it, you should also eat, know when the meeting is done." The trader eagerly eats biscuits. The accounts started to get them to sleep and after a while they went into deep sleep. When he reached Jaipur, his luggage, including suitcases, was missing.
The business of cheating and deceit is going on so many turbulence that old beliefs have become tarnished. Looking at today's situation, there is a need to think about how ancient thinkers and teachers have written that there is a reason for unbelief, or the reason for true faith. Untrue is also spoken in such a way that it creates faith. In the courts, some people have the business of giving testimony. They take a certain fee for this work. Testimony or testimony in the court matters a lot. The whole case is dependent on the testimony.
A man, who had a date in the court on that day, could not arrange the testimony. Seeing him in a troubled condition, a professional witness came to him and said - "You look very upset, what's the matter?"
He said - "Do not ask for trouble. Today is the testimony in my case. Whom I brought as a witness, the opposition hid it somewhere by tempting them. What do I do now ?"
The witness said - "No problem, I will give testimony. Tell me the key things related to the case. "
He was going to explain the issue to the witness that the call was done. Along with the lawyer, the plaintiffs and witnesses appear before the judge in the court.
With the order of the judge, the opposition lawyer asked - "Well, tell me how was his color?"
If someone else would have been in Pashto, because the issue was not well understood, but the professional witness did not even have a wrinkle on the face. He said - "What color do you ask for a hujoor, that is not so good that can say. Very clean and shiny. "
"And stature?"
This was a question of astonishing witness. The witness had not even asked the issue to appear before the court. Now what answer? Who is being asked about the height, he did not know. But immediately he got restless and took his right hand to the height of the shoulder and said - "Tad almost so much ....."
His talk was not fulfilled that the opposition lawyer had said - "Look, my lords are so big a cock?" The case of the burglary was the case, now the witness came to know. Immediately he held it and said - "Huzur, the lawyer sir said to be in the middle. Let the left hand go under a little right hand ", and by saying so, that professional witness palm of his left hand down a foot of the right hand of the right hand. It was proved that the height of the chicken was one foot. His testimony was considered perfect, while he was a completely false and fake witness.
किसी के भी पास ज्ञान एक जैसा नहीं है किसी के पास ज्यादा है तो किसी के पास कम है. कोई अपने ज्ञान को अच्छे कार्यो में लाता है तो कोई गलत कार्यो में लाता है. कोई भी धर्म हमे कुछ गलत करने का आदेश नहीं देता है. ये तो सब अपनी सोच पर निर्भर करता है. और रही बात सच बोलने की तो लगता है आज के वक़्त में सच कोई बोलना ही नहीं चाहता है क्योकि सच के साथ जीतना थोडा कठिन हो जाता है और झूठ के साथ जीतना थोडा आसन हो जाता है.
बिल्कुल सही बात है, अभी अपने द्वारा अर्जित ज्ञान को अलग- अलग तरह से उपयोग करते है. कोई अच्छे कार्यों में लगता है तो कोई ख़राब/गलत कार्यों में. धर्म तो सभी सही ही है.
जी सही कहा आपने
मैंने अभी देखा आपने एक पोस्ट, मेरी पोस्ट के जवाब में डाली है. जबकि मैंने ऐसा कभी नहीं लिखा कि 'असत्य, सत्य पर भारी है' और 'असत्य की सत्य पर विजय' ऐसा भी कभी नहीं लिखा और न ही ऐसा मतलब है. पता नहीं आपको ऐसा क्यों लगा?
आपकी post के बदले में नहीं, google पर बहुत से आर्टिकल देखे कुछ new टॉपिक post करने के लिए. वही पर कुछ ऐसा दिखाई दिया इसलिए थोड़े शब्दों में बोल दिया. आपकी post में ऐसा बिलकुल नहीं कहा गया है अगर कहा गया होता तो यही पर इस बात को बोलता न की अपने ब्लॉग पर. मैं आपकी post को ध्यान से पढता हूँ आपके द्वारा बताया गया सब सत्य है. अगर कोई प्रोब्लुम है तो मैं उस post को एडिट कर दूंगा लेकिन आप ऐसा ना सोचे की मैंने आपकी post के बदले में ऐसा कुछ आपकी post में कहा है.
Sir, क्या मैं आपसे पर्सनल कांटेक्ट कर सकता हूँ
यहां आप अपने विचारों के लिए स्वतन्त्र है. आप चाहे जो लिखे मुझे कोई आपत्ति नहीं है. आपको पोस्ट एडिट करने की भी कोई जरुरत नहीं है.
आप को मेरे reply से कुछ गलत लगा हो तो उसके लिए क्षमा चाहता हूँ. आप अपना कार्य करते रहें.
कोई बात नही sir, हमने अपनी पोस्ट को एडिट कर दिया है। हम यहाँ पर सिर्फ दोस्तो का साथ चाहते है। हम नही चाहते कि हमारी किसी बात से किसी को कोई आपत्ति हो।
@mehta
आपको अंदरूनी रूप से बढ़ना होगा। कोई भी आपको सिखा नही सकता है, कोई भी आपको आध्यात्मिक नहीं बना सकता है। कोई अन्य शिक्षक नहीं बल्कि आपकी अपनी आत्मा है।
@mehta sir your post are truly a blessed for Indian steemean, you inspire us and spreading the spiritual points of interest.
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Vese muje Aap ki post dekh kar kafi khushi hui AK to Aap ki post Bhot hi Achi he or dusri bat Ye Hindi or English me likhi gai he isse Ye pata chalta he ki Aap dabal Mehant kar rhe he logo ke liye
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यह जीवन सफर क्या अनोखा सफर है ,
हर मोड़ पर इसके रहता यह डर है।
ख़त्म न कहीं हो जाए यह मंजिल से पहले ,
लगा काल का पहरा आठों पहर है।
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It's an interesting story sir ji.
साम दाम दंड और भेद तीन चीजे ऐसी है जहां सत्य बेबस नजर आता है।
कहावत भी है जिसकी लाठी उसकी भैस।
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