हमारा परम धर्म : दान ---- (अंतिम भाग – ५)
पिछली चार पोस्ट में हम यह तो जान चुके है कि दान का क्या महत्त्व है और क्यों जरुरी है ? अब थोड़ा उदाहरण से ओर समझ लेते है ।
भारतीय साहित्य में रहीम के नाम को सभी जानते हैं । वे बड़े समर्थ कवि थे । उन्होंने भक्ति साहित्य की ज्ञान-गंगा ही बहाई है । बड़े समर्थ कवि होने के साथ-ही-साथ वे बड़े कोमल ह्रदय वाले सज्जन पुरुष भी थे तथा दानी भी थे । उनके द्वार से किसी भी दिन कोई याचक खाली हाथ नहीं जाता था । मुक्त हस्त से वे याचकों को दान दिया करते थे । उनकी विशेषता यह थी कि वे बड़े ही विनम्र थे और बड़ी विनम्रतापूर्वक ही वे दान देते थे । एक दिन उनका एक मित्र उनके पास आया और कहने लगा – “आप खूब दान देते है, किसी को भी कभी आप निराश नहीं करते । हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई का कोई भेदभाव आपके मन में नहीं है, यह तो बड़ी अच्छी बात है । किन्तु एक बात मेरी समझ में नहीं आती ।”
“कौन-सी बात ?”
“यह कि आप दान देते समय अपना सिर हमेशा नीचे रखते हैं, आँख उठाकर याचक को देखते तक नहीं । ऐसा क्यों ?”
रहीम जी ने उत्तर दिया – “भाई, दान मैं कहां देता हूँ ! यह तो ईश्वर ही देता है । मैं तो केवल एक माध्यम हूँ जिसके द्वारा ईश्वर को जो कुछ, जिसे देना है वह देता रहता है ।”
“तो इसमें सिर नीचा रखने की क्या बात है ?”
“अपना सिर ऊँचा कैसे करू भाई ! मुझे लज्जा आती है । देने वाला तो ईश्वर है जबकि लोग मुझे ही दाता समझ लेते हैं । इसी से मुझे लज्जा आती है और इसी कारण से मैं अपना सिर सदा नीचा ही रखता हूँ ।”
ऐसे थे रहीम, परम दानी, यह थी उनकी विनम्र भावना ।
जैनधर्म जीवदया पर आधारित धर्म है । जैन समाज में एक-से-एक बढ़कर दानी सदैव हुए है, आज भी है, तथा आगे भी होते रहेंगे । इतने दानवीर समाज में हैं कि उनके नाम गिनना भी सम्भव नहीं है । हम तो इतना ही कहेंगे कि दानशीलता की इस उत्कृष्ट भावना को विस्तार देते चले जाइए । ऐसा करने से आपका जीवन महान से महानतम बनता चला जाएगा । अपनी शक्ति के अनुसार दान कीजिए तथा पूरी विनम्रता पूर्वक दीजिए ।
एक बार गांधीजी दक्षिण भारत के किसी शहर में पहुचें । आजादी से पहले का समय था । बाढ़ के कारण किसी स्थान पर बहुत ही विनाश हुआ था । सहस्त्रों नर-नारी निराश्रित हो गए थे । उन्हें सहायता की बहुत आवश्यकता थी । जब गांधीजी उस छोटे-से शहर के रेलवे प्लेटफार्म पर उतरे तब वहां एक वृद्धा आई । उसका शरीर जर्जर था । हाथ-पैर कापं रहे थे । शरीर पर चिपके हुए उसके चीथड़े उसकी निर्धनता की कथा स्वयं कह रहे थे ।
उस वृद्धा ने जाने कहां से एक पैसा निकालकर गांधीजी को दिया और कहा – “बेटा, मैं तो बहुत गरीब हूँ किन्तु मेरे पास यह एक पैसा है । तू यह ले ले । इससे बाढ़ से दु:खी व्यक्तियों की मदद करना ।”
यह देखकर गांधीजी तथा वहां खड़े सभी अन्य व्यक्ति हतप्रभ-से रह गए । गांधीजी की आँखों में तो आंसू ही आ गए थे । “मेरी भारतमाता ! तेरी जय हो,” कहते-कहते वे उस वृद्धा के चरण छूने लगे । किन्तु उस वृद्धा ने कांपते हाथों से गाँधी को थाम लिया ।
steemians ! उस गरीब वृद्धा का दान किसी भामाशाह, कर्ण अथवा रहीम के लक्ष-लक्ष, कोटि-कोटि मूल्य दे दान से कम नहीं था । वह एक पैसा मात्र नहीं था, वह थी एक मानव की दूसरी मानव आत्मा के प्रति अगाध दया भावना ।
मेरा आशय पूर्णरूपेण स्पष्ट है कि कभी ऐसा मत सोचिए कि आपके पास है क्या अथवा कितना, कि आप किसी को कुछ दान दें । आप तो बस, अपने मन में आप प्राणिमात्र के लिए प्रेम उत्पन्न कीजिए, दयाभाव लाइये, दान देने के लिए तत्पर रहिए । यदि आप एक कोटि का दान दे सकते हैं तो एक कोटि का दीजिए । यदि आप एक पैसा ही दे सकते हैं तो एक पैसा ही दीजिए ।
मूल बात है – दान धर्म के महत्त्व को आज भली-भांति समझ लीजिए । अपने द्वार से किसी को निराश मत जाने दीजिए तथा सदैव विनम्र रहकर दान दीजिए । मुझे विश्वास है कि ईश्वर के द्वार से आप भी कभी निराश नहीं लौटेंगे ।
The English translation of this post by Google tool as below
Our ultimate religion: Charity ---- (Final Part - 5)
In the last four posts, we have learned about the importance of donation and why is it necessary? Now take a little from the example.
Everyone knows the name of Rahim in Indian literature. He was a very capable poet. They have learned the knowledge of devotional literature. Along with being a capable poet, he was also a gentle gentleman with gentle soft hearts and a dancer. No yacha was left empty handed from their door any day. With free hand, they used to donate the petition. His specialty was that he was very polite and he humbly gave away. One day a friend came to them and said, "You donate a lot, you do not disappoint anyone. There is no discrimination between Hindus, Muslims, Sikhs, Christians in your mind, it is a great thing. But one thing I do not understand. "
"What's the matter?"
"It is that when you donate your head always puts down your head, lifting your eyes and not seeing it. Why, so ?"
Rahim ji replied - "Brother, where donation I give! This is God Himself. I am the only medium through which whatever God has to give, keeps giving it. "
"So what's the point of keeping the head down?"
"Brother how to raise your head high! I am shy Giver is God, whereas people consider me as a donor. This is why I am ashamed and for this reason I keep my head down forever. "
Such were Rahim, the supreme benefactor, that was their humble feeling.
Jainism is a religion based on Jeevadya. In the Jain society, one more donor has always been there, is still there, and will continue to happen even further. There are so many donators in society that it is not possible to count their names. We will only say that it will extend to this excellent sense of charity. By doing this, your life will become the greatest of the greatest. Make donations according to your power and be polite.
Once Gandhiji reached a city in South India. There was a time before independence. Due to the flood, there was very destruction at some place. Millions of men and women became destitute. They needed a lot of help. When Gandhiji landed on the small railway platform of that small town, an old man came there. His body was shabby. The hands and feet were cutting. His screws sticking to the body were telling the story of his poverty itself.
Where did the elderly take away a penny from Gandhiji and said, "Son, I am very poor but I have this money. You take this Helping the depressed people from the flood. "
Seeing this, Gandhiji and all the other people standing there were in a bad state. Gandhiji's eyes had come to tears. "My mother mother! Tell me, you are hail, "they say, they began to touch the feet of that old man. But the old man stared at Gandhi with trembling hands.
steemians! The donation of that poor old man was not less than the gift of attention given to Bhamashah, Karna or Rahim. He was not a single penny; it was a compassionate feeling towards a human's other human soul.
My intent is absolutely clear that do not ever think that you have what or how much, that you donate something to someone. You just, in your mind, create love for the world, take pity, be ready to donate. If you can donate one class, give one grade. If you can give one penny then give one penny.
The basic thing is - understand the importance of charity religion today. Do not let anyone go disappointed with your door and always be humble and donate. I believe that you will never get disappointed with God's door.
इससे जुडी पिछली चार पोस्टों का जुड़ाव है (The last four posts associated with this are the attachments) -
- https://busy.org/@mehta/pnmud
- https://busy.org/@mehta/7q2yrt
- https://busy.org/@mehta/5wuw5f
- https://busy.org/@mehta/6kctzk
Your post really make me happy. You every sentence is meaningful and very easy to understand. Thanx for writing this beautiful article.
https://steemit.com/finger/@ashokroy79/6ugb36
A charitable person is the one who is compassionate, desirous and a good worker. In a good human being, there is the virtue of charity. In whose heart there is no mercy, that can never be a donor, and that charity is such that there is no sense of gratitude in return.
Very nice post on donation, I just want to add my opinion here, please don't mind. Donation is an eternal process, it is a part of sanaatan (eternal) dharma and sanaatan dharma is the father of all religions.But nowadays people are forced to donate beyond the capacity, many fraud organizations seek donation, one cannot donate as he desires.Donation is becoming the pseudonym of demand.
मैं क्यों mind करूँगा. ये तो सबके अपने - २ विचार है. सब लोग अपने तरीके से सोचते है. मैं तो सिर्फ सैद्धांतिक तोर पर बता रहा हूँ, वास्तविकता में चीजे समय के अनुसार कुछ बदल जाती है परन्तु सिद्धान्तों पर कोई अन्तर नहीं पड़ता है. आपके विवेक अनुसार समय पर जो सही लगे वही सही है.
दान करना तो हम भारतीयों का परम कर्तव्य है।
रहीम के बारे में क्या कहूं, वह तो परम ज्ञानी और दानी महापुरुष थे उनकी महानता चारों तरफ फैली हुई थी। दान को हम रामायण की एक घटना से समझ सकते हैं कि जब रामसेतु बन रहा था तब एक गिलहरी भी अपने शरीर पर रेत लगाकर उसे समुद्र में भिगोने लगी। जब हनुमान जी ने उस से पूछा कि तुम्हारे ऐसा करने से सेतु निर्माण में कोई प्रभाव नही पड़ेगा । तब गिलहरी ने बहुत ही शांत स्वर में बहुत ही अच्छा जवाब दिया कि मुझे पता है कि इस से निर्माण में कोई प्रभाव नही पड़ेगा , लेकिन मैं तो अपना कर्म कर रही हु और यह दान ही तो है।
दान छोटा हो या बड़ा इस से कोई फर्क नही पड़ता फर्क तो इस से पड़ता है कि उस से दूसरों का कितना भला होता है।
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काश हम सभी लोग इस संस्कृति को निभा पाते आप ने सभी भागों में काफी अच्छे से इस दान का महत्ब बताया लेकिन आज के युग में इसी का गलत फायदा उठा रहे,है आज दान लेना प्रोफेशन बन चूका है , और क्यों न बनाये अगर कम से कम १०० लोगो भी पैसे दे तो दिन का १००० और महीने का ३०००० , न कोई टैक्स न कोई पूछने वाला . जो दान दे रहा है वो सिर्फ लोक लाज में ही सारी उम्र बिता देता है?और जो ले रहा दान वही कर रहा है ऐस?
ये आज की कुछ हद तक सत्यता है परन्तु 100% सही नहीं है. आपना विवेक काम में लेकर दान करे. सैद्धांतिक तोर पर कुछ भी गलत नहीं है बस समय का फेर है. इसे हम अपनी सुझबुझ से सही कर सकते है.
Bahut badhia mehta ji . You always give good content , realizing the need of humanity .
परम धर्म ही सबसे बड़ा धर्म है गुरु देव
I think Dan dne se acha kam dna 👌
आकर्षक होंठों के लिए दया के शब्द बोलें।
अच्छी नज़रों के लिए, लोगों में अच्छाई को ढूंढें।
एक अच्छे शरीर के लिए, भूख से अपना खाना साझा करें।
खूबसूरत बालों के लिए, एक बच्चे को दिन में एक बार अपनी अंगुलियों को चलाने दें।
अनुग्रह के लिए, ज्ञान के साथ चलें आप कभी अकेले नहीं चलेंगे।
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bhai agr sb log dan krenge to dan lene wale amir bn jayenge,jaise mandiro ko hi dekh lo aur pujario ko
excellent post~
Awesome post @mehta ji as usually.
Hello....
bro your thoughts are really good and inspiring thanks for motivating me
मेहता जी आपकी पोस्ट हर भारतीय तक पहुंचनी चाहिए। ....ताकि देश का कुछ भला हो सके।
Ekdam Sahi kaha aapne sir we should have big heart to give.
Nice post!
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